Wednesday 23 January 2013

कर्मचारियों के तबादलों में अब नेताओं की मर्जी और डिजायर नहीं चलेगी




यद्यपि कानून में तबादला दंड के रूप में परिभाषित नहीं है किन्तु फिर भी इसे एक दंड के औजार या हिसाब बराबर करने के रूप में काम में लिया जा रहा है जिसे कानून की भाषा में न्यायिकेतर (Extra-judicial Punishment) दंड कहा जता है| तबादला किसी शिकायत का कोई हल भी नहीं है | यदि कर्मचारी ने वास्तव में कोई कदाचार किया है तो उसे दण्डित किया जाना चाहिए अन्यथा जो कर्मचारी आज यहाँ कदाचार से जनता को परेशान कर रहा है आगे नए स्थान पर जाकर भी जनता को परेशान ही करेगा | तबादले को एक शोर्टकट के रूप में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए | वैसे तबादले करने वाले अधिकारी अपना सिरदर्द टालने व राजनेतिक तुष्टिकरण के लिए यह सब कर रहे हैं और देश के न्यायालय भी इस समस्या की जड़ तक नहीं पहुँच रहे थे|  
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने अमिर चंद बनाम हिमाचल राज्य के मामले में दिनांक 09.01.2013 को अपने आदेश से प्रदेश के लाखों सरकारी कर्मचारियों के लिए बनाई गई तबादला नीति में संशोधन करने के आदेश दिए हैं ताकि सभी कर्मचारियों को राजनीतिक द्वेष के चलते प्रताडऩा से बचाया जा सके। न्यायालय ने सरकार को 28 फरवरी तक का समय देते हुए हिदायत दी है कि यदि तबादला नीति में अदालत के दिशा-निर्देशों के अनुसार संशोधन नहीं किए जाते तो यह अदालत की अवमानना माना जाएगा।
न्यायाधीश दीपक गुप्ता व न्यायाधीश राजीव शर्मा की खंडपीठ ने कुछ कर्मचारियों द्वारा तबादला आदेशों को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं का एक साथ निपटारा करते हुए उपरोक्त आदेश पारित किए। न्यायालय ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि प्रदेश में कर्मचारी राजनीतिक आकाओं के इशारे पर धड़ल्ले से बदले जाते हैं और जिन कर्मचारियों का कोई राजनीतिक या प्रशासनिक आका नहीं है, को बेवजह प्रताडि़त किया जाता है। कुछ कर्मचारी दुर्गम क्षेत्रों में फंसे रहते हैं तो कुछ पूरा सेवाकाल शहरों में ही निकाल देते हैं।
मंत्रियों, विधायकों व राजनीतिक लोगों द्वारा तबादला आदेशों में दखल को बेवजह व नाजायज ठहराते हुए न्यायालय ने कहा कि यदि किसी नेता की किसी कर्मचारी की सेवाओं से शिकायत है तो वह इसकी शिकायत कर सकता है परंतु संबंधित कर्मचारी का तबादला शिकायत की जांच के बाद ही सही पाए जाने पर किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने अपने आदेशों में स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सरकार तबादला नीति में संशोधन करे और विभिन्न स्टेशनों को अलग-अलग दर्ज श्रेणियों के हिसाब से बांटे।
सरकार को 4 या 5 श्रेणियों में विभिन्न स्टेशनों को बांटने के आदेश देते हुए कहा गया है कि सरकार शिमला, धर्मशाला व मंडी जैसे शहरों को श्रेणी में रखे और डोडरा क्वार, काजा जैसी जगहों को डीया श्रेणी में रखे। श्रेणी से शुरूआत करते हुए कर्मचारी को सभी श्रेणी की जगहों में बदला जाए और श्रेणी की जगहों में कर्मचारी केवल एक बार ही अपनी सेवाएं दे।
इन सेवा शर्तों में केवल अति संवेदन मामलों में ही छूट दी जाए और इस बारे में विस्तृत आदेश पारित किए जाएं। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि चुने गए प्रतिनिधियों का कोई हक नहीं बनता कि कोई कर्मचारी उसकी इच्छा की जगह में सेवाएं दे। यह इच्छा केवल प्रशासनिक मुखिया की होती है। प्रशासनिक मुखिया प्रतिनिधियों की ऐसी मांगें वापस लौटाने के लिए स्वतंत्र है। माना जा रहा है कि इस आदेश से कर्मचारियों को राजनैतिक कोप भाजन से बड़ी राहत मिलेगी और नेताओं का राजकीय सेवा में अनुचित दखल समाप्त हो सकेगा|

3 comments:

  1. kash ye lagu ho gaye

    ReplyDelete
  2. isko sbhi daftron me circulate kiya jana chahiye ; rk vikrama sharma bureau alpha news chandigarh chandigarh office ; aditi kalakriti 3/11 , ff raghuvanshi complex burail sectr 45 a chanigarh --47

    ReplyDelete
  3. Our Politicians and Bureaucrats have fed all the rules and regualtions to the vultures and not they think that they are the Empror of the domains they are holding and they may do wahtever they like. It is a pity that we have to invoke the writ juristiction of the courts to enable the rule of law to prevail.

    People shold now become vigilent and expose their designs and whow them that they are the masters and these Politicians and Bureaucrats are their servant.

    ReplyDelete