देश में समय समय पर होने वाले साम्प्रदायिक और
जातिगत दंगे सौहार्द और समरसता पर गंभीर आक्रमण कर देश की सामासिक संस्कृति, अखंडता
और एकता को चुनौती देते रहे हैं| समय समय पर होनेवाले इन दंगों के मामलों में देश के
सर्वोच्च न्यायालय ने समय समय पर हस्तक्षेप कर पीड़ित लोगों को राहत दी है| गत वर्ष
उत्तरप्रदेश राज्य के मुज़फरनगर जिले में भी
साम्प्रदायिक दंगों के वीभत्स रूप से देश का सामना हुआ जिसमें मुस्लिम समाज
के बड़ी संख्या में लोगों को मृत्यु के घाट उतार दिया गया, उन्हें अपना निवास छोड़ने
के लिए विवश कर दिया गया और महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार बना लिया गया | इस
घटनाक्रम के प्रसंग में इलाहाबाद उच्च न्यायालय व
उच्चतम न्यायालय में कई याचिकाएं दायर हुई | उच्चतम न्यायालय में दायर
याचिका मोहमद हारुन बनाम भारत संघ के मामले में न्यायालय ने पाया की यह
दुर्भाग्यपूर्ण घटना दिनांक 7 सितम्बर 2013 को हुई| उत्तरप्रदेश के मुज़फरनगर जिले
में सांप्रदायिक तनाव के कारण दंगे भड़के जिस कारण बहुत से लोगों को जान से हाथ
धोना पडा और बहुत से लोग चिंता व भय के कारण घरबार छोड़कर जान बचाकर भाग गए|
याचिका में यह कहा गया कि दंगे मुजफरनगर , शामली और इसके आसपास के ग्रामीण
इलाकों में महापंचायत, जोकि नागला मन्दौर में जाट समुदाय दारा आयोजित की गयी थी,
के बाद भड़के| इस महापंचायत में दिल्ली, हरियाणा व उत्तरप्रदेश से डेढ़ लाख से अधिक
लोग दिनांक 27 अगस्त 2013 की घटना के
विरोध में भाग लेने आये थे| उक्त घटना मुज़फरनगर जिले की जानसठ तहसील के कवल गाँव
में दिनांक 27 अगस्त को घटित हुई थी जिसमें दो समुदायों के बीच हिंसा भड़की और
मामूली घटना के कारण दोनों पक्षों के तीन युवक मारे गए तथा बाद में इस घटना को
साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया| याचिकाकर्ता का आरोप रहा कि स्थानीय प्रशासन ने
कानून लागू करने के स्थान पर न केवल इन
लोगों को संगठित होने की अनुमति दी बल्कि उपेक्षापूर्वक व संभवत: मिलीभगत से इस
कार्यवाही पर निगरानी रखने में विफल रहा| यह भी आरोप लगाया गया कि इस तिथि से लेकर अब तक 200 से अधिक मुस्लिम
लोगों की नृशंस हत्या की गयी और लगभग 500 लोग, इन 50 जाट बाहुल्य गाँवों में
जहां मुस्लिम समुदाय
अल्पसंख्या में हैं, अभी भी गायब हैं| कई
हजार शिशु, बच्चे, औरतें और बूढ़े विभिन्न गांवों में बिना भोजन और आश्रय के रह गए
हैं और प्रशासन द्वारा उन्हें कोई सुविधा मुहैया नहीं करवाई गयी है| इसके अतिरिक्त
बड़ी मात्रा में मुज़फरनगर के आसपास अवैध और अनाधिकृत गोला –बारूद, हथियार बरामद हुए
हैं| सभी समुदायों के विस्थापित लोगों को आश्रय कैम्पों में रहने के लिए विवश किया
जा रहा है जहां पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं | इन सबके परिणाम स्वरुप विभिन्न
व्यक्तियों, सुप्रीम कोर्ट बार संघ, गैर सरकारी संगठनों ने दंगा पीड़ितों के मूल
अधिकारों की रक्षा के लिए कई याचिकाएं दायर की | इन याचिकाओं में विस्थापित लोगों के पुनर्वास , संरक्षण, और बचाव
के लिए केंद्र व राज सरकार को निर्देश देने की प्रार्थना की गयी| जो बच्चे हिंसा
या कैम्पों में सर्दी के कारण मर गए उसके लिए उनके माता-पिता को हर्जाना देने की
प्रार्थना भी शामिल थी| समस्त तथ्यों व तर्कों पर गौर करने के बाद सुप्रीम कोर्ट
ने निम्नानुसार निर्देश दिए :
राज्य सभी चोटग्रस्त लोगों व हिंसा में मृतकों को चिन्हित करे और उनके आश्रितों को कुल 15 लाख रूपये मुआवजा दे| हिंसा के कारण
उनकी चल-अचल सम्पति को हुए नुक्सान के लिए भी, यदि उन्हें पहले प्राप्त नहीं हुई
है तो, क्षतिपूर्ति दी जाए | उपरोक्त में
से जो भी हिंसा, बलात्कार आदि से पीड़ित जिन्हें कोई राशि नहीं मिली हो, उन्हें भी स्थानीय प्रशासन को आज से एक माह के भीतर
आवेदन करने की अनुमति दी जाती है| ऐसे आवेदन की जांच करने के बाद प्रशासन एक माह
के भीतर उचित राहत राशि स्वीकृत करेगा|जिला प्रशासन पात्र लोगों के लिए रानी
लक्ष्मीबाई पेंशन योजना भी लागू करेगा और
जो लोग विस्थापित हो गए हैं उनके मामलों पर भी विचार करेगा|
यदि कोई पीड़ित आवश्यक समझे तो वह जिला कानूनी सहायता
प्राधिकारी से संपर्क कर सकता है जिसे सहायता करने के निर्देश दिए जाते हैं|
जिन्हें 5 लाख रूपये की सहायता मिल चुकी है और वे घटना स्थल के अतिरिक्त अन्यत्र
कहीं बसने का मानस बना लिया हो अब यदि वे अपना व्यावसाय पूर्व स्थान पर करना चाहें
व अपने सम्बन्धियों व मित्रों के साथ रहना चाहें तो राज्य को यह निर्देश दिया जाता
है कि उनसे इस राशि की वसूली नहीं की जाए|
जिला प्रशासन यह सुनिश्चित करे की वे लोग अपने
पूर्व स्थान पर शांतिपूर्वक अपना व्यसाय कर सकें व अपने रिश्तेदारों और मित्रों के
साथ रह सकें| जिन अधिकारियों को यह शिकायत है कि इस घटना क्रम के कारण उन्हें बदले की भावना से अन्यत्र
दूर स्थानांतरित कर दिया गया वे भी अपना प्रतिवेदन एक माह के भीतर सक्षम अधिकारी
को प्रस्तुत कर सकते हैं| सक्षम अधिकारियों को निर्देश दिए जाते हैं कि वे ऐसे प्रतिवेदनों पर नए सिरे से विचार करें|
जिन किसानों ने अपनी आजीविका – ट्रेक्टर , मवेशी , गन्ने की फसल आदि खो दी हो
उन्हें भी उचित मुआवजा दिया जाए| जिन किसानों को अभी तक कोई क्षतिपूर्ति प्राप्त नहीं हुई हो वे एक माह के भीतर स्थानीय/ जिला
प्रशासन से आवेदन कर सकते हैं जिनका निपटान एक माह के भीतर किया जाएगा|
न्यायालय ने आगे कहा कि पुन: बल दिया जाता है की यह राज्य
प्रशासन का कर्तव्य होगा की वे केंद्र व राज्य की इंटेलिजेंस एजेंसियों के साथ
मिलकर इस प्रकार की सांप्रदायिक घटनाओं की रोकथाम करें| यह भी स्पष्ट किया जाता है
कि कानून व व्यवस्था बनाए रखने के
दायित्वाधीन अधिकारियों की यदि कोई लापरवाही हो तो उनके पद को ध्यान में रखे बिना
उन्हें कानून के दायरे में लाया जाए|
समस्त पीड़ितों को उनके धर्म पर ध्यान दिए बिना सहायता दी जाए | उक्त निर्देश देते हुए याचिका का दिनांक
26 मार्च 2014 को निपटान दिया गया| साथ ही यह भी निर्देश दिए गए की यदि कोई पीड़ित
बाधा अनुभव करता हो और जिला प्रशासन से समाधान नहीं हुआ हो तो वह इस न्यायालय से
संपर्क कर सकता है| इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जो मामले यहाँ स्थानांतिरत नहीं हुए
हों उनमें उच्च न्यायालय द्वारा इसी अनुरूप आदेश पारित किये जायेंगे|
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