Wednesday 26 November 2014

जवाबदेही के अभाव में वर्तमान शासन प्रणाली में राजनैतिक पार्टियों के घोषणा-पत्रों, नीतियों, कार्यक्रमों का अभिप्रायः समाप्त हो गया है

तमिलनाडू राज्य में जब भ्रष्टाचार की दोषी पायी गयी जे. जयललिता को अनिर्वाचित मुख्यमन्त्री बना दिया गया तब  सुप्रीम कोर्ट  में बी. आर. कपूर द्वारा दायर जनहित याचिका बी. आर. कपूर बनाम तमिलनाडू राज्य में निर्णय दि. 21.09.01 में कहा है कि जब एक निचले न्यायालय द्वारा अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जाता है और दण्डित किया जाता है तो अभियुक्त निर्दोष  है यह मान्यता समाप्त हो जाती है। दोषसिद्धि प्रभावी हो जाती है और अभियुक्त को सजा काटनी होती है। अपील न्यायालय द्वारा सजा स्थगित की जा सकती है और अभियुक्त को जमानत पर छोड़ा जा सकता है। भारतीय संवैधानिक व्यवस्था द्वारा न्यायिक पुनरीक्षण का मौलिक एवं आवश्यक विशेष कृत्य  न्यायपालिका को सौंपा गया है। विधि शासन का सारतत्व यह है कि राज्य द्वारा शक्ति का प्रयोग, चाहे विधायिका या कार्यपालिका या अन्य प्राधिकारी द्वारा हो ,संवैधानिक सीमाओं के भीतर ही किया जाना चाहिए और यदि किसी कार्यपालक द्वारा अपनायी गयी कार्यप्रणाली संवैधानिक मर्यादा के उल्लंघन में है तब उसकी न्यायालयों द्वारा परीक्षा की जा सकती है।   
       पायोनियर पत्रिका में श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा प्रकाशित(1996), ‘‘जवाबदेही किधर’’ में हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली की वर्तमान अशुद्धता की सफाई के लिए समस्त संभव प्रक्रियागत बदलावों पर राष्ट्रीय  बहस का आह्वान किया था। उन्होंने असंतोष व्यक्त किया है कि विधायी कार्य को जिस सीमा तक सक्षमता या प्रतिबद्धता से करना चाहिए  न तो संसद, न ही राज्य विधान सभाएं कर रहीं है। उनके अनुसार, कुछ अपवादों को छोड़कर जो लोग इन लोकतान्त्रिक संस्थानों के लिए चुने जाते है, वे औपचारिक या अनौपचारिक रूप से विधि-निर्माण में न तो प्रशिक्षित हैं और न ही अपने पेशे में सक्षमता और आवश्यक ज्ञान का विकास करने में प्रवृत प्रतीत होते हैं। समाज के वे लोग जो मतदाताओं की सेवा में सामान्यतः रूचि रखते हैं और विधायी कार्य कर रहे हैं, आज की मतदान प्रणाली में सफलता प्राप्त करना कठिन पाते हैं और मतदान प्रणाली धन-बल, भुज-बल और जाति व समुदाय आधारित वोट बैंक द्वारा लगभग विध्वंस की जा चुकी है। शासन के ढांचे में भ्रष्टाचार ने लोकतंत्र के सार-मताधिकार- को ही जंग लगा दिया है, उनके अनुसार शासन -ढांचे में भ्रष्टाचार की सुनिश्चित संभावना के कारण राजनैतिक पार्टियों में अवसरवाद व बेशर्मी बढ़ी है जिससे बिना लोकप्रिय जनादेश  के प्रायः अवसरवादी गठबन्धन व समूहीकरण हुआ है। प्रणाली में कमियों के कारण वे सत्ता पर फिर भी काबिज हो जाते है तथा बने रहते हैं। जातिवाद, भ्रष्टाचार तथा राजनीतिकरण ने हमारी सिविल सेवाओं की दक्षता व निष्ठा में भी कमी की है। जवाबदेही के अभाव में वर्तमान शासन प्रणाली में राजनैतिक पार्टियों के घोषणा-पत्रों, नीतियों, कार्यक्रमों का अभिप्रायः समाप्त हो गया है।  जे. जयललिता की मुख्यमन्त्री पद पर नियुक्ति निरस्त कर दी गयी ।




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