Sunday 11 November 2012

न्यायपालिका पर नए सवाल


11 नवंबर से भारत में अब तक के सबसे बड़े घोटाले 2जी स्पेक्ट्रम मामले की अदालत में सुनवाई शुरू हो गई है। आरोपियों में पूर्व संचारमंत्री ए. राजा और द्रमुक की ही अन्य दिग्गज सांसद कनीमोरी शामिल हैं। कनीमोरी तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और द्रमुक सुप्रीमो करुणानिधि की पुत्री हैं। इनके अलावा 12 अन्य लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है, जिनमें वरिष्ठ नौकरशाह और उद्योगजगत के बड़े खिलाड़ी शामिल हैं। इस प्रकरण में सरकारी खजाने को अनुमानित दो लाख करोड़ की चपत लगी है। अब सवाल उठता है कि क्या इस मामले में न्याय हो पाएगा और वह भी जल्द? इसका जवाब नकारात्मक नजर आ रहा है। जिस उच्च न्यायपालिका को अब तक संस्थागत ईमानदारी का आखिरी रखवाला माना जाता था, वह भी विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया की तरह दागी हो गई है। पथभ्रष्टता अब भारत में आम बात हो गई है।

इस हताशा का तात्कालिक कारण है उच्चतम न्यायालय की पूर्व जज रूमा पाल का व्याख्यान। 10 नवंबर को वीएम तारकुंडे मेमोरियल व्याख्यान में उन्होंने उच्च न्यायपालिका के सात पाप गिनवाए हैं। पापों की यह सूची इस प्रकार है-अपने साथी के अन्यायपूर्ण आचरण पर आंखें मूंदना; पाखंड-न्यायिक स्वतंत्रता के मानकों को विकृत करना; गोपनीयता-न्यायिक आचरण का कोई भी पहलू, यहां तक कि उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कोई पारदर्शिता न होना; चोरी और उबाऊ विद्वता- अकसर उच्चतम न्यायालय के जज अपने पूर्ववर्तियों के फैसलों के अंश उठाकर अपने फैसले में लिख देते हैं और उनके नाम का उल्लेख करना भी उचित नहीं समझते। साथ ही वे जटिल भाषा और शब्दाडंबर से भरी भाषा में फैसला देते हैं; व्यक्तिगत अहंकार-उच्च न्यायपालिका अपनी श्रेष्ठता को जजों की अनुशासनहीनता व प्रक्रियाओं के उल्लंघन को छुपाने की ढाल बनाती है; पेशेवर अहंकार-जज पूरी तैयारी किए बिना ही फैसला लिख देते हैं। आखिरी अपराध है भाईभतीजावाद व पक्षपात-अन्य जजों के साथ मिलीभगत करके जज विभिन्न मामलों व नियुक्तियों में एक-दूसरे को फायदा पहुंचाते हैं।

न्यायपालिका की खामियां उजागर करने के लिए तारकुंडे मेमोरियल व्याख्यान जस्टिस रूमा पाल के लिए बिल्कुल सही मंच था, जो खुद भी ईमानदारी और साख के उच्चतम मानकों पर खरे उतरते हैं। जस्टिस तारकुंडे को कभी सुप्रीम कोर्ट में प्रोन्नत नहीं किया गया। विडंबना यह है कि उनकी साख और साहस ही उनके रास्ते में बाधा बन गए। उन्हें भारत में सिविल लिबर्टी आंदोलन के पिता के रूप में याद किया जाता है। वह जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता थे। अफसोस की बात है कि भारत में चागला, तारकुंडे और खन्ना के कद के बहुत कम जज हुए हैं, जिन्हें रोल मॉडल के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। यही लोकतंत्र की खामियों का संकेतक है, जहां कानून के शासन की श्रेष्ठता और वैधानिकता व्यवहार रूप में सामने आने चाहिए, न कि अपवाद रूप में। रूमा पाल ने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की गहरी पैठ को भी रेखांकित किया।

भारत की उच्च न्यायपालिका पर भ्रष्टाचार के अनेक दाग लगे हैं। वर्तमान में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन पर उनके दो पूर्व साथी जजों-जस्टिस शमसुद्दीन और जस्टिस सुकुमारन ने पक्षपात के आरोप लगाए थे। अभी इस आरोप को गलत सिद्ध करना भी शेष है कि बालाकृष्णन के परिवार ने उनके पद के आधार पर भारी संपत्ति अर्जित की। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वाईके सब्बरवाल पर भी ऐसे ही आरोप लगाए गए थे। जून 2010 में पूर्व कानून मंत्री और टीम अन्ना के सदस्य शांति भूषण ने कुछ पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर सुनामी ला दी थी। शांतिभूषण पर भरोसा करें तो देश में अब तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहे जजों में से आधे भ्रष्ट थे।

दरअसल इस मामले में विवाद का मुद्दा यह है कि क्या भारत की न्यायपालिका को अकुशलता और भ्रष्टाचार के दलदल से बाहर निकाला जा सकता है। जस्टिस पाल ने बिल्कुल सही फरमाया है कि प्रत्येक न्यायाधीश की व्यक्तिगत ईमानदारी और साख ही न्यायिक प्रक्रिया की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता कायम रख सकती है। खेद की बात यह है कि भ्रष्ट आचरण को लेकर जिन जजों-पीडी दिनकरन, सौमित्र सेन और वी. रामास्वामी के खिलाफ जिस तरह से महाभियोग की प्रक्रिया चलाई गई उसने न्यायपालिका को लेकर आम भारतीय की निराशा को घटाने के बजाय बढ़ाया ही है। इन सभी मामलों में विधायिका और कार्यपालिका ने तार्किक परिणति पर पहुंचने से पूर्व ही मामले खत्म कर दिए और दागी जजों में से किसी को भी दंडित नहीं किया जा सका। उच्च न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार का समग्र भारतीय ढांचे पर बड़ा घातक प्रभाव पड़ रहा है। इससे लोकतांत्रिक विधान और संविधान की शुचिता का मखौल उड़ रहा है। देश को इस कैंसर से ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ निपटना होगा अन्यथा भारत भ्रष्टाचार के दलदल में इतना गहरे डूब जाएगा कि उसका उबरना संभव नहीं होगा। सत्यमेव जयते।

लेखक सी. उदयभाष्कर 

http://celebritywriters.jagranjunction.com/2011/11/14/indian-judicial-system-2g-spectrum-scam-case-corruption-in-india/

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