Monday 28 February 2011

पुलिस अत्याचार के लिए कठोर दंड


पुलिस थाने के भीतर जुगताराम का गुप्तांग काटे जाने  के प्रमुख प्रकरण  में निचले न्यायालय द्वारा सुनाये गये निर्णय  में  अपील में राजस्थान उ न्या ने दो दोषियों को दोषमुक्त कम कर दिया था । सुप्रीम कोर्ट ने अपील के निर्णय  में केन्द्रीय अ ब्यू बनाम किशोरसिंह में निर्णय दि 25-10-10 में कहा है कि  एक पुलिस थाने के भीतर आहत तथा पुलिस वालों के अतिरिक्त अन्य गवाह का होना मुश्किल  से ही सम्भव है। एक पुलिस थाना कोई सार्वजनिक स्थल या सार्वजनिक सड़क नहीं है जहां लोग देख सकें कि क्या होने जा रहा है। वह एक क्षतिग्रस्त साक्षी है और सामान्यतः न्यायालय क्षतिग्रस्त व्यक्ति के साक्ष्य को अधिक महत्त्व देता है। फिर भी हम यह विश्वास करने में कठिनाई पाते हैं कि पुलिस थाने में जो कुछ हो रहा हो उससे थाना प्रभारी होते हुए वह अनभिज्ञ हो और हमें जुगताराम पर अविश्वास  करने का कोई कारण दिखाई नहीं देता। यह एक नृशंस  कृत्य था जिसके लिए अभियुक्त किसी उदारता की पात्रता नहीं रखता। पुलिसवाले जो आपराधिक कृत्य करते है वे ऐसे कृत्य करने वाले अन्य लोगों से बड़े दण्ड के पात्र है क्योंकि पुलिस का कर्त्तव्य लोगों की रक्षा करना है और अपने आप कानून तोड़ना नहीं। यदि रक्षक ही भक्षक बन जाए तो सभ्य समाज का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। दोनों दोषमुक्त दोषियों की सजा पुनः कायम कर दी गयी ।
(

No comments:

Post a Comment