Tuesday 1 March 2011

प्रभावी लोगों के मध्य न्याय

दिल्ली उ. न्या. ने बी एम डब्लू कार दुर्घटना  के प्रमुख प्रकरण संजीव नन्दा बनाम राज्य में निर्णय दि. 12.05.09  में कहा है कि न्यायालय ने यह भी अवलोकन किया है कि इस प्रकार के प्रकरण में साक्ष्यों को सुनहरे तराजू में तोलने का सिद्धान्त लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि हस्तगत प्रकरण एक उदाहरण है जिसमें सम्पूर्ण आपराधिक न्याय का धनी एवं प्रभावी लोगों द्वारा अपहरण कर लिया गया है। न्यायालय का अवलोकन मात्र यह संदर्भ व्यक्त करना नहीं अपितु एक न्यायाधीष द्वारा आक्रोष एवं दुःखद चिन्ता का वर्णन करता है कि पुलिस द्वारा अन्वेशण के दौरान पर्याप्त कमियां छोड़ते हुए खेल योजना तैयार की गयी जिससे अंततः अपराधियों की सहायता हो। यदि एक आपराधिक न्यायालय को न्याय दान का प्रभावी उपकरण होना हो तो पीठासीन न्यायाधीष को अन्वीक्षा में मात्र एक मूक दर्षक बनकर नहीं रहना चाहिए, सक्रिय रूचि तथा सत्य का पता लगाने और दोनों पक्षों के साथ निश्पक्षता व औचित्य के साथ न्याय करना चाहिए, अन्वीक्षा में भागीदार बनकर प्रतिभा प्रमाणित करते हुए समस्त सुसंगत विशय सामग्री ढूंढ निकालनी चाहिए। जो दमनात्मक या तंग करने वाला आचरण कार्यवाही के दौरान घटित हुआ, न्यायालय- इस बात पर आखें नहीं मंूद सकते । अन्ततः संजीव नन्दा की सजा बढा कर सहअभियुक्तों को साक्ष्य मिटाने के अभियोग में दण्डित किया गया और झूठी गवाही के अभियोग में अभियुक्त पर कार्यवाही की गयी। स्मरण रहे कि उक्त प्रकरण में मीडिया द्वारा स्ंिटग ऑपरेषन पर न्यायालय सक्रिय हुआ था ।

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