Friday 2 March 2012

एक कार्य दुर्भावपूर्ण है यदि जिस उद्देश्य के लिए प्रयोग करने के लिए सौंपा गया था उसके विपरीत है


सुप्रीम कोर्ट ने महेश चंद्र बनाम क्षेत्रीय प्रबंधक, उ प्र वित्त निगम (१९९३ ए आई आर ९३५) के निर्णय में कहा है कि निगम को भी समान रूप से चाहिए कि उसके कृत्य न्यायिकता, औचित्य, तर्कसंगतता और सुसंगतता के मानकों के अनुरूप हों| और जो अतर्कसंगत है वह स्वेच्छाचारी है| स्वेच्छाचारी कार्य शक्ति से बाहर है| यह कभी भी सदाशयपूर्ण और सद्विश्वसपूर्ण नहीं हो सकता क्योंकि विवेकाधिकार प्रयोग करने वाले व्यक्ति को कोई भी व्यक्तिगत लाभ नहीं होना चाहिए| एक कार्य दुर्भावपूर्ण है यदि जिस उद्देश्य के लिए प्रयोग करने के लिए सौंपा गया था उसके विपरीत है| किसी अन्य बात के बिना कर्तव्य का दूषित संपादन बेईमानी है | बेईमानी के उद्देश्य के प्रमाण के बिना भी एक कार्य बुरा है , यदि प्राधिकारी ने तर्क के विपरीत कार्य किया हो|जन मत सर्वोच्च विचार बिंदु है |
प्रत्येक विस्तृत शक्ति जिसके प्रयोग के दूरगामी परिणाम हों प्रयोजन की सीमाएं हैं| विवेकाधिकार के प्रयोग का उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए| लोक अधिकारी को शक्ति के मद के बजाय   कर्तव्य के प्रति सावधान रहना चाहिए| इसके कृत्य और निर्णय जो आम आदमी से सम्बन्ध रखते हों, औचित्य और न्याय की कसौटी पर खरे उतरने चाहिए

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