Wednesday 7 March 2012

न्यायालय उत्तर पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन के निर्देश दे सकता है

इलाहाबाद उच्च  न्यायालय ने  नेहा सिंह बनाम डा. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय (मनु/उप्र/०४१०/२०११) के निर्णय में कहा है कि जहां तक किसी कानूनी प्रावधान के अभाव में न्यायालय को सामान्यतया पुनर्मूल्यांकन हेतु निर्देश नहीं देना चाहिए किन्तु ऐसे मामले हो सकते हैं जहां उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में गंभीर गलतियाँ हुई हों जिनसे यह संकेत मिलता हो कि परीक्षक ने उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन करते समय अपने दिमाग का प्रयोग नहीं किया| ऐसे मामले विरले और आपवादिक ही होंगे| ऐसे मामलों में न्यायालय उत्तर पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन के निर्देश दे सकता है | पुनर्मूल्यांकन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विद्यार्थी को विश्वविद्यालय परीक्षा में उचित मूल्यांकन प्राप्त हो और मानवीय भूलों और संबद्ध परिस्थितयों को न्यूनतम किया जाये| हस्तगत प्रकरण में यदि परीक्षार्थी के मामले पर  उपकुलपति/अन्य अधिकारी जो उनके द्वारा अधिकृत हो द्वारा विचार किया जाय तो न्याय के हित की पूर्ति हो सकती है| अतः याची को एक सप्ताह के भीतर प्रकरण के समर्थन में  समस्त प्रलेख व सामग्री संलग्न कर अपनी शिकायतें उठाते हुए अपना प्रतिवेदन उपकुलपति के समक्ष नए सिरे से पुनः प्रस्तुत  करने की अनुमति प्रदान की जाती है|संबद्ध अधिकारी ऐसा प्रतिवेदन प्राप्त होने पर इस पर विचारण करेगा और एक तर्कसंगत और स्पष्ट आदेश पारित करेगा|

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