Tuesday 8 March 2011

अवमान क़ानून के नए आयाम


गौहाटी उ.न्या. के कुछ न्यायाधीषों के प्रति असम्मानजनक भाशा में समाचार प्रकाषित करने पर स्वप्रेरणा से अवमान हेतु संज्ञान लिया गया। प्रत्यथर््िायों ने बाद में असम्मानजनक षब्दों के लिए क्षमा याचना करते हुए तथ्यों की पुश्टि कायम रखी ।  गौहाटी उ.न्या. ललित कलिता के मामले में 04.03.08 निर्णय समालोचना हेतु असंदिग्ध रूप से खुले हैं। एक निर्णय की कोई भी समालोचना चाहे कितनी ही सषक्त हो, न्यायालय की अवमान नहीं हो सकती बषर्तें कि यह सद्भाविक एवं तर्क संगत षालीनता की सीमाओं के भीतर हो। एक निर्णय जो लोक दस्तावेज है या न्याय प्रषासक न्यायाधीष का लोक कृत्य है कि उचित एवं तर्क संगत आलोचना अवमान नहीं बनती है।
ऐसी समालोचना में यह उचित रूप में जताया जा सकता है कि निर्णय अषुद्ध है या विधि या स्थापित तथ्यों, दावों के विशय में भूल हुई है। न्यायाधीष की विष्वसनीयता, निश्ठा, ईमानदारी और निश्पक्षता न्यायिक प्रणाली में के आवष्यक तत्व हैं। इस आवेदन पत्र पर जो ध्यानाकर्शण हुआ है -जिस गति से इसका प्रक्रियान्वयन हुआ हमारे द्वारा ध्यान दिये बिना नहीं रहा जा सकता। यहां तक कि यह धारित करते हुए भी कि न्यायाधिपति अग्रवाल को इस आवेदन पत्र का कोई ज्ञान नहीं था, उपलब्ध विशय वस्तु के अनुसार समयानुसार हम कम से कम इस निश्कर्श पर पहंुचते हैं कि जनहित याचिका में निर्णय एवं भूमि-आवंटन के मुद्दे के तथ्य के मध्य स्वीकार्य सम्बन्ध का प्रत्यर्थीगण ने तर्कसंगत एवं सद्भाविक विष्वास किया जिस पर कि प्रत्यर्थीगण हमारे तर्कसंगत संदेह का लाभ पाने के पात्र है व उ.न्या. ने प्रत्यर्थीगण को दोशमुक्त कर दिया ।

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