Thursday 10 March 2011

मात्र नाम की निर्मल


उच्च न्यायालय न्यायाधीश निर्मल यादव के विरूद्ध आरोप पत्र दाखिल
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की प्रेस विज्ञप्ति दिनांक 04/03/11 में कहा गया है कि अगस्त 2008 में पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश के दरवाजे पर पाये गये रु 15 लाख के सम्बन्ध में पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश और चार अन्य लोगों के विरूद्ध चंडीगढ के विशेष न्यायाधीश के न्यायालय में आज आरोप पत्र दाखिल कर दिया। विधि एवं न्याय मंत्रालय से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के अन्तर्गत अभियोजन स्वीकृति प्राप्त होने बाद यह आरोप पत्र दाखिल किया गया है।
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरों की जांच में यह स्थापित हुआ है कि तत्कालीन उच्च न्यायालय न्यायाधीश ने पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की हैसियत में लोक सेवक होते हुए (प्रथम) निजी व्यक्ति से बिना किसी प्रतिफल के रु15 लाख प्राप्त किए तथा यह भी ज्ञात हुआ कि उसने अन्य (द्वितीय) निजी व्यक्ति जिससे, एक हवाई यात्रा का टिकट भी प्राप्त किया,में हित रखते हुए अन्य मूल्यवान वस्तुएं प्राप्त की है । आगे यह भी पाया गया है कि (द्वितीय) निजी व्यक्ति उच्च न्यायालय न्यायाधीश के समक्ष प्रकरण सं0 आर एस ए 550/2007 में मात्र वकील ही नहीं था अपितु पंचकुला में एक भूखण्ड, जो कि उसके मित्र (तीसरे निजी व्यक्ति) के साथ प्रकरण की विषय वस्तु रही है, में भी हितबद्ध था । उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने (प्रथम) निजी व्यक्ति से रु 2.5 लाख पूर्व में भी एक अवसर पर लिए थे और उसके नाम का एक मोबाईल फोन प्रयोग में लेते हुए पायी गयीं।
उच्च न्यायालय न्यायाधीश द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 11, (प्रथम) निजी व्यक्ति द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की 12 सहपठित धारा 120 बी भा.द.सं., अन्य निजी व्यक्ति (द्वितीय), उसके मित्र/(तीसरे) निजी व्यक्ति द्वारा धारा 120 बी भा.द.सं. सहपठित धारा 193 सहपठित 192, 196, 199 और 200 भा.द.सं. के अधीन दण्डनीय अपराधों के लिए और निजी व्यक्ति (द्वितीय) निजी व्यक्ति (तीसरे) और अन्य निजी व्यक्ति (चौथे) द्वारा उनके सारभूत अपराधों के लिए आरोप पत्र दाखिल किया गया है।
के.अ.ब्यूरो ने आगे जोड़ा है कि उपरोक्त निष्कर्ष ब्यूरो द्वारा अनुसंधान एवं संग्रहित साक्ष्यों पर आधारित हैं। भारतीय कानून में एक अभियुक्त को उचित परीक्षण में दोषी न पाये जाने तक निर्दोष समझा जाता है।
न्यायाधीश निर्मल यादव ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि के.अ.ब्यूरो पागल हो गया है । ध्यान देने योग्य है कि के.अ. ब्यूरो की विज्ञप्ति में उच्च पदासीन व्यक्तियों के नाम तक उजागर नहीं किए गए है और अन्त में स्पष्टीकरण जोड़कर अभियुक्तों को निर्दोष भी बताया है यद्यपि यह समाचार दैनिक समाचार पत्रों में पूर्व में सचित्र प्रकाशित हो चुका है। आरोप पत्र एक लोक दस्तावेज है जिसको गोपनीय रखने का कोई औचित्य नहीं है और उच्चतम न्यायालय द्वारा शिवनंदन पासवान प्रकरण में कहे अनुसार चूंकि अपराधिक कार्यवाही समाज हित में संचालित होती है अतः कोई भी नागरिक इसमें किसी भी स्तर पर भागीदार बन सकता है। प्रश्न यह है कि क्या के.अ.ब्यूरो पूर्व में भी ऐसा करता रहा है और क्या सभी मामलों में ऐसा स्पष्टीकरण जोड़ता रहा है। यद्यपि विनीत नारायण के मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि कानून अभियोजन एवं अनुसंधान हेतु अभियुक्तों को उनकी हैसियत के अनुसार वर्गीकृत नहीं करता। समान प्रकार का अपराध करने वाले सभी अपराधियों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए। यह संदेहास्पद है कि जो के.अ.ब्यूरो अभियुक्तों का नाम तक प्रकट करने में संकोच कर रहा है और उन्हें निर्दोष भी बता रहा है क्या अभियोजन का दृढ़तापूर्वक संचालन करते समय दबाव में  नहीं आयेगा। यह भी संदिग्ध है कि के.अ.ब्यूरो कंपकंपाते हाथों से अभियुक्तों को दण्डित करवाने में सफल हो जायेगा।

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