Wednesday 23 March 2011

शरारतपूर्ण अन्याय

लिपोक की अन्वीक्षण  न्यायालय द्वारा दोषमुक्ति के विरुद्ध गौहाटी उच्च न्यायालय से समय सीमा में छूट की मांग  सहित अपील की गयी जिसे अस्वीकार करने पर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका नागालैण्ड राज्य बनाम लिपोक के निर्णय दि 01.04.05 में कहा गया कि  अपील दायर करने के निर्णय की स्थिति में अपील दायर करने के लिए जिम्मेवार अधिकारी द्वारा तुरन्त कार्यवाही करने की आवष्यकता है तथा यदि कोई कमी रहती है तो उसके लिए उसे व्यक्तिषः दायी ठहराया जाना चाहिए। राज्य को एक व्यक्ति के समान धरातल पर नहीं रखा जा सकता। एक व्यक्ति यह निर्णय लेने में फुर्ती करेगा कि उसे अपील या आवेदन द्वारा कोई उपचार प्राप्त करना है क्योंकि वह ऐसा व्यक्ति है जो विधितः क्षतिग्रस्त है जबकि राज्य एक अव्यक्तिगत तन्त्र है जो अपने अधिकारियों या सेवकों के माध्यम से कार्य करता है। यह पाया गया है कि कड़े स्तर के प्रमाण अपनाना कई बार लोक न्याय की रक्षा में असफल रहता है और इससे अपील दायरी की प्रक्रिया में कुषलता द्वारा विलम्ब की सार्वजनिक कुचेश्टा परिणित होगी। समय सीमा में छूट अनुमत कर दी गयी।

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