Thursday 24 March 2011

पुलिसिया व्यवहार पर नियंत्रण

पुलिस द्वारा  एफ आइ आर दर्ज करने से मना करने के चर्चित मामले में मुम्बई उ.न्या.ने  पंचभाई पोपटभाई बुटानी बनाम महाराश्ट्र राज्य के निर्णय दि 10.12.09 में कहा है कि जितेन्द्र मेहता के प्रकरण में पूर्व में खण्डपीठ ने यह दृश्टिकोण अपनाया था कि किसी परिवाद में विरोध प्रार्थना के अभाव में या विस्तृत तथ्यों के न होने पर भी परिवाद की वैधता तथा वैधानिकता प्रभावित नहीं होगी और संहिता की धारा 190 के अन्तर्गत संज्ञान लेने में सक्षम दण्डनायक संहिता की धारा 156 (3) के अनुसार अनुसंधान हेतु निर्देष देने हेतु सक्षम है। फिर भी आपराधिक न्यायषास्त्र के सिद्धान्तों को ध्यान में रखते हुए पुनः किसी कठोर प्रारूप का प्रावधान नहीं किया जा सकता और न ही प्रार्थना खण्डों के सम्बन्ध में ऐसा आवष्यक है। यह निष्चय परिवादी या पीड़ित व्यक्ति को करना है कि वह संहिता की धारा 156 (3) के अन्तर्गत अनुसंधान हेतु संदर्भित करना चाहता है या संहिता की धारा 200 के अन्तर्गत उसके परिवाद को नियमित परिवाद संव्यवहार किया जाना है। हमें यह अवधारित करने में कोई षंका नहीं है कि धारा 156 (3) के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र या याचिका के लिए न तो कोई प्रारूप विषेश का प्रावधान है और न ही ऐसा बनाया जाना आवष्यक है। परिवादी या व्यथित पक्षकार द्वारा धारा 156 (3) के अन्तर्गत मात्र न्यायालय के यह ध्यान में लाया जाना पर्याप्त है कि पुलिस के ध्यान में लाये जाने के उपरान्त भी वह विधि के अनुसार संज्ञेय अपराध पर कार्यवाही करने तथा अनुसंधान करने में विफल रही है या तथ्यगत स्थिति में सीधे न्यायालय पहुंचना आवष्यक था। एक बार जब ऐसी याचिका प्रस्तुत कर दी जाय, विद्वान् दण्डनायक विधि अनुसार और परिवादी की प्रार्थना पर उपयुक्त क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने हेतु स्वतन्त्र है। किन्तु एक याचिका जहां तक वह संज्ञेय अपराधों का प्रकटन करती है न्यायालय द्वारा मात्र इस आधार पर अस्वीकार नहीं की जा सकती कि इसमंे उपयुक्त प्रार्थना समाहित नहीं है। निर्णित किया कि परिवादी को निष्चय करना है कि संहिता की धारा 156 (3) या धारा 200 के अन्तर्गत उसके परिवाद पर कार्यवाही की जानी है।

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