Saturday 19 March 2011

न्यायिक आचरण

प्रार्थी न्यायिक अधिकारी होते हुए  एल एल एम की परीक्षा में बैठा था तथा परीक्षा में अनुचित साधनों के उपयोग का दोषी पाये जाने पर सेवामुक्त कर दिया गया था ।सुप्रीम कोर्ट में याचिका  दयाषंकर बनाम इलाहाबाद उ. न्या. ( ए. आई. आर. 1987 स. न्या. 1469) में कहा गया कि कोई भी इन्कारी उसे उजागर सख्त तथ्यों से परे नहीं कर सकती। याची का आचरण न्यायिक अधिकारी के रूप में असंदिग्धतः अयोग्य है। न्यायिक अधिकारी दो तरह के आचरण- एक न्यायालय में तथा दूसरा न्यायालय के बाहर- नहीं अपना सकते। उन्हें मात्र खरापन, ईमानदारी और निश्ठावान का एक मात्र मानक अपनाना चाहिए। जिस पद को वे धारण करते हैं वे दूर तक भी उसके अयोग्य होने वाला कार्य  नहीं कर सकते।  याचिका  निरस्त कर सेवामुक्ति को उचित ठहराया गया ।

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