Friday 22 April 2011

पुलिसिया राज-2


पुलिस द्वारा नागरिकों को पुलिस थानों में अवैध बन्दी बनाये रखने के प्रमुख प्रकरण जितेबोईना गुरवैया बनाम विषेश अधिकारी नक्सल विरोधी दस्ता (1999 (3) एएलडी 585) में आन्ध्र प्रदेष उच्च न्यायालय ने कहा है कि प्रत्येक जिला पुलिस अधीक्षक अपने क्षेत्र में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किये गये 11 निर्देषों की अनुपालना सुनिष्चित करने के लिए प्रत्येक तीन माह में एक बार पुलिस थानों की कार्यप्रणाली की समीक्षा करेंगे और मुख्यालय को रिपोर्ट भेजेंगे।प्रत्येक खण्ड में उपाधीक्षक पुलिस अपने क्षेत्र के समस्त पुलिस थानों का पखवाड़े में दौरा करेंगे और सत्यापित करेंगे कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देषों की समुचित अनुपालना हो रही है अथवा नहीं। यदि किसी पुलिस अधिकारी द्वारा इन निर्देषों की अनुपालना में उपाधीक्षक द्वारा कमी पायी जाती है तो आवष्यक विभागीय कार्यवाही करेंगे। उपाधीक्षक जिला पुलिस अधीक्षक का अपनी निरीक्षण की रिपोर्ट भेजेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने भगवान सिंह बनाम पंजाब राज्य (1992 3 एस.सी.सी. 249) में कहा है कि पूछताछ का मतलब चोट पहुंचाना नहीं है। एक व्यक्ति का उत्पीड़न करने और तीसरी डिग्री के तरीके अपनाना मध्यकालीन युग की प्रवृति के हैं और ये नृषंस तथा कानून के विपरीत है। यदि पुलिस अधिकारी जिनका कार्य नागरिकों को सुरक्षा व संरक्षण देना है ऐसे कार्य करते हैं जिससे नागरिकों के मानस में असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है तो यह एक रक्षक के भक्षक बनने से भी अधिक जघन्य है।
आन्ध्र प्रदेष में एक संगठन को एक रास्ते से समारोह को गुजरने की अनुमति दे दी गई किन्तु दूसरे समूह को कानून और व्यवस्था की दुहाई देते हुए मना कर दिया गया। इस प्ररकण में आन्ध्र प्रदेष उच्च न्यायालय ने गेहाहु ए मिरान षाह बनाम सचिव गृह विभाग (1993) क्रि.ला.ज. 406 (आन्ध्रा) में कहा कि पुलिस अधिकारियों द्वारा मुख्य स्थान से होकर एक संगठन को धार्मिक जुलूस को अनुमति देने तथा दूसरे को मना करने में इस आधार पर अपनाया गया भेदभाव कि इससे कानून और व्यवस्था की समस्या हो सकती है,  यह कृत्य अनुचित है। दोनों संगठनों को अपना जुलूस मुख्य केन्द्र से होकर ले जाने का अधिकार है और कानून और व्यवस्था की समस्या का समाधान करना पुलिस अधिकारियों का कर्तव्य है।

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