Friday 15 April 2011

पुलिस पर नियंत्रण

पुलिस अधिकारी दरोगासिंह को भागलपुर अपर सत्र न्यायाधीश द्वारा व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने हेतु आदेश दिया गया था किन्तु कुछ पुलिस कर्मियों के साथ मिलकर उसने अपर सत्र न्यायाधीश पर हमला कर दिया। इस तथ्य की रिपोर्ट पटना उच्च न्यायालय में भेजे जाने पर अभियुक्तगण को न्यायिक अवमानना हेतु दण्डित किया गया जिसके विरूद्ध उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीट कोर्ट ने अपील दरोगासिंह एवं अन्य बनाम बी.के पाण्डे के निर्णय दिनांक 13.04.04 में कहा कि यद्यपि अधिकांश अभियुक्तों की अनुपस्थिति को स्वीकार नहीं किया है क्योंकि यह रिकॉर्ड स्वयं अभियुक्तों द्वारा बनाया गया है और उनके किसी  वरिष्ठ  अधिकारी ने इसका समर्थन नहीं किया है। इस कार्यवाही को लम्बा खेंचना, जिस कुशलता एवं गति से, न्याय प्रशासन चलना चाहिए को अनावश्यक अवरूद्ध करना होगा। दुराचरण को रोकने के लिए तुरन्त दण्ड का भय होना सर्वाधिक प्रभावी उपाय है । देश में न्यायालय के शासन के बने रहने के लिए राज्य शक्ति को न्यायालयी आदेशों के समर्थन में खड़ा रहना चाहिए। अपीलार्थियों को झूठा फंसाने में साक्षीगण में से किसी का भी कोई हित नहीं है। लोग न्यायालय को न्याय का मन्दिर समझकर आते हैं और वहां वे अपने आपको सुरक्षित समझते हैं। पुलिस सामाजिक नियंत्रण वाली एक एजेन्सी है इसलिए उसे समाज की अपेक्षाओं पर खरा उतरना चाहिए। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि पुलिस के उच्चाधिकारियो को अभियुक्त जोखुसिंह के व्यवहार का ज्ञान नहीं था या तो वे यह सब जानते थे या उन्हें जानना चाहिए था। अपील निरस्त कर सजा बहालकर अभियुक्तगण के विरूद्ध विभागीय एवं अपराधिक कार्यवाही त्वरित गति से करने के आदेश दिये गये।

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