Sunday 17 April 2011

जेल प्रशासन में सुधार


सुप्रीम कोर्ट ने तिहाड़ जेल की अवस्था के प्रमुख प्रकरण रमेष कौषिक बनाम बी.एल.विज (1981 ए आई आर 1767) के निर्णय में कहा है कि इस समय कानून और व्यवस्था का अभाव प्रमुख समस्या है। इस स्थिति के लिए हमारे न्यायालयों को अपनी जिम्मेवारी स्वीकार करनी चाहिए। जेल प्रषासन की समस्या के विशय में न्यायालयों को हाथ ऊपर नहीं करना चाहिए। जेल के अन्दर या बाहर उचित, न्यायपूर्ण एवं सही तरीकों के अलावा किसी की भी स्वतन्त्रता का हनन नहीं होना चाहिए। इस न्यायालय का रिट क्षेत्राधिकार मानवाधिकारों एवं मानवीय अनुचित कृत्यों दोनों के लिए समानरूप से लागू होना चाहिए।
कानून को हेतुकयुक्त वकील ही षक्ति प्रदान करता है। हमारे सामने की विशय वस्तु आपवादिक एवं असंदिग्ध क्षेत्राधिकार प्रयोग करने के लिए पर्याप्त है। इससे न्यूनतम सामाजिक स्वच्छता एवं ज्यादती करने के लाईसेन्स पर प्रतिबन्ध लगेगा एवं अन्यथा जेल की उपचार पद्धति से व न्यायालय द्वारा दण्ड के दोहरे उद्देष्य अपराधों की रोकथाम व पुनर्वास विफल हो जायेंगे। राज्य को तुरन्त जेल की हैण्ड बुक हिन्दी भाशा में तैयार कर प्रतियां प्रसारित करने का आदेष दिया गया ताकि जेल के साथियों में कानूनी जागृति आ सके।
महाराश्ट्र राज्य की जेलों में आगन्तुकों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता था परिणामतः जेल में होने वाली गंभीर अनियमितताओं के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने महाराश्ट्र राज्य बनाम आषा अरूण गवाली (ए आई आर 2004 सु. को. 2223) के निर्णय में कहा है कि इस प्रकार की गतिविधियां मात्र कमियां या चूक ही नहीं है अपितु ये उन अपचारियों एवं अपराधियों से भी अधिक खतरनाक है जोे बचाव के लिए अपने आपको जेल के अन्दर रखते है और आधिकारिक तौर पर उन अपराधों के लिए कानून के अन्दर जिम्मेदारी से बचने के लिए अनपुस्थिति का बहाना गढते है। यदि वे लोग इन अपराधों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़कर अपराधों के दण्ड से सुरक्षित बच निकलने के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करते हैं जो पुलिस अधिकारियों की विष्वसनीयता पर ऐसा गंभीर प्रहार है जिसकी पूर्ति नहीं हो सकती है। उच्च न्यायालय ने संक्षेप में यही पाया है और इस दोश के निवारणार्थ प्रयास किया है।

No comments:

Post a Comment