Tuesday 26 April 2011

न्यायिक आचरण के आयाम -2


वकीलों के आग्रह पर एक न्यायाधीष पर प्रतिकूल टिप्पणियांें के मामले षेलेष्वर नाथ सिंह बनाम इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय दिनांक 11.08.99 में कहा गया है कि चूंकि एक न्यायाधीष के सम्बन्ध वकीलों के साथ अच्छे नहीं है इस आधार पर प्रतिकूल प्रविश्टि करना न्यायोचित नहीं है। न्यायाधीष का यह मुख्य कार्य नहीं है कि वह वकीलों (बार) के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाये रखे। उसका कर्त्तव्य न्याय करना है जिससे चाहे वकीलों का एक समुदाय प्रसन्न या अप्रसन्न हो। एक न्यायाधीष को प्रायः ऐसे आदेष पारित करने पड़ते हैं जिनसे बार (या इसका एक भाग) अप्रसन्न होता है एवं वह स्वयं अलोकप्रिय होता है किन्तु उसे इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए चाहे परिणाम कुछ भी हो उसे न्याय करना चाहिए। यह स्मरण रखना चाहिए कि निचले स्तर पर न्यायाधीषों को तनावपूर्ण व दबावपूर्ण वातावरण में कार्य करना पड़ता है जहां कि पक्षकार एवं उनके पैरोकार अपने नथूने फूलाए हुए गर्म सांसे ले रहे होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने राजेष कुमार सिंह बनाम मध्य प्रदेष उच्च न्यायालय मामले के निर्णय दिनांक 31.05.2007 में कहा है कि न्यायाधीषों को अन्य लोगों की ही भांति प्रतिश्ठा अर्जित करनी होती है। वे षक्ति के प्रदर्षन के माध्यम से प्रतिश्ठा की मांग नहीं कर सकते। लगभग दो षताब्दि पूर्व अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीष जॉन मार्षल ने कहा है कि न्यायपालिका की षक्ति न तो मामलों के निर्णयों में, न ही दण्ड देने में और न ही अवमान के लिए दण्ड देने में निहित है अपितु आम आदमी का विष्वास जीतने में निहित है।
सुखदेव स्टील कटर्स एवं वेल्डर्स बनाम ललता प्रसाद (न्यायिक अधिकारी) मामले के निर्णय दिनांक 05.05.2005 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की है कि न्यायिक षक्तियों के दुरूपयोग पर कार्यकारी पक्ष में उपचार उपलब्ध है जिनके द्वारा ऐसी षक्तियों के प्रयोग करने से रोका जा सकता है। यदि एक व्यक्ति न्यायिक सेवा के क्षेत्र से बाहर कार्य करता है तो उसके परिणामों के लिए वह जिम्मेवार है।
राज्य बनाम पी.के.जैन (2007 क्रि.ला.ज. 4137) के मामले में यह टिप्पणी की गई कि विद्वान सत्र न्यायाधीष के एक षिकायतकर्ता स्वयं को सह अभियुक्त मानने के निर्णय से आपराधिक न्याय प्रषासन निकाय की साख गिरी है तथा यह तस्वीर प्रस्तुत हुई है कि जहां एक ओर राश्ट्र भ्रश्टाचार में असामान्य वृद्धि का सामना कर रहा है न्याय प्रषासन गवाहों का सम्मान नहीं कर सकता ।

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