Tuesday 19 April 2011

पुलिस राज के नए आयाम


सुप्रीम कोर्ट ने करतार सिंह बनाम पंजाब राज्य (1994 एस.सी.सी. (3) 569) के निर्णय में पुलिस वाले जल्दी ही यह जान जाते हैं कि कानून क्या अपेक्षा रखता है अलग बात है और वास्तव में क्या करना है अलग बात है। एक पुलिस अधिकारी को यह प्रषिक्षण दिया जाता है कि उसे परिणाम प्राप्त करना है उसके लिए चाहे जो साधन या तरीके इस्तेमाल किए जाये। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस संगठन को कठोर साम्राज्यवाद लागू करने के लिए बनाया गया था स्वतन्त्रता के बाद जनता के षासन में भी अपनी निर्दयता एवं नृषंसता में कोई परिवर्तन नहीं किया है। हमारे संविधान का- मूल दर्षन व्यक्ति की गरिमा व स्वतन्त्रता -की भावना पुलिस के निचले स्तर तक नहीं पहुंची क्योंकि पुलिस वाले जनता के प्रति जवाबदेह नहीं है और यह बल ब्रिटिष पुलिस से विपरीत अत्यधिक केन्द्रीयकृत है जो कानून और समाज के लिए कार्य करने के स्थान पर प्रषासन का भय उत्पन्न करने के लिए डंडे तथा अपनी कर्कष आवाज का प्रयोग करता है। जैसा कि राश्ट्रीय पुलिस आयोग ने स्पश्ट किया है कि इसके लिए एक कारण हमारा राजनैतिक ढांचा हो सकता है जो कि उन्हें समाज की सेवा के स्थान पर अपने उद्देष्यों के लिए प्रयोग करता है। समाज के एक बड़े तबके के पास ज्ञान या धन के अभाव के कारण इस न्यायालय तक नहीं पहुंचने के कारण मनमानी षक्तियों के प्रयोग तथा पुलिस ज्यादती में परिणित होती है। छोटे मामलों में इस न्यायालय में अपील का प्रावधान उपचार को स्वतः विफल करना होगा। छोटे मामलों में धन के अभाव के कारण अपील करने में असमर्थता अनुच्छेद 14 एवं 16 में दी गई गारंटी का उल्लंघन होगा। कई मामलों में तो यह न्यायदान से मनाही हो सकता है।
जमानतीय अपराध में भी पुलिस द्वारा रामजीलाल की गिरफ्तार का विरोध करने से परस्पर संघर्श हो गया था जिसमें पुलिस ने रामजीलाल पर प्राणघातक हमला करने का आरोप लगाया था। प्रकरण राजस्थान उच्च न्यायालय में पहुंचने पर राज्य बनाम रामजीलाल (1978 क्रि.ला.रि. राज. 12) में कहा गया कि यह कहना अधिक सत्य होगा कि लड़ाई तब प्रारम्भ हुई जब पुलिस ने रामजीलाल को ऐसे अपराध में पकड़ने का प्रयास किया जो जमानतीय था। रामजीलाल ने जमानत प्रस्तुत की किन्तु पुलिस ने स्वीकार करने से मना कर दिया। आगे भगवानदास ने भी जमानत देनी चाही किन्तु इसे स्वीकार करने के स्थान पर जैसा कि उसकी चोट से स्पश्ट है उसे पीटा गया। चूंकि पुलिस के अनधिकृत कृत्यों के विरूद्ध रामजीलाल व भगवानदास को व्यक्तिगत प्रतिरक्षा का अधिकार है अतः रामजीलाल एवं भगवानदास आदि पर लगाये गये आरोपों के लिए दोशी ठहराने का प्रष्न ही नहीं उठता है। पुलिस को आई चोटें सामान्य हैं जिनसे यह साबित होता है कि पुलिस बल के सदस्यों की हत्या के प्रयास का अभियुक्तों का कोई इरादा नहीं था। सरकार की अपील निरस्त कर अभियुक्तों की दोशमुक्ति बहाल रखी गयी।

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