Saturday 3 December 2011

पेंशन व् ग्र्चुइटी एक ही धरातल पर हैं

सुप्रीम कोर्ट ने इंदू भूषण द्विवेदी बनाम झारखण्ड राज्य की अपील सं0 4888/10 में कहा है कि अपीलार्थी को प्रतिकूल टिप्पणियां जो कि वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में समाहित थी, नहीं बतायी गयी उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय कि उसकी सेवाये बर्खास्त करने की अनुसंशा की आधार बनी और इन टिप्पणियों के प्रस्तावित विचारण के विषय में उसे सूचित नहीं किया गया। यह धारित किया जाना चाहिये कि अपीलार्थी इससे गंभीर पूर्वाग्रह से ग्रसित हुआ।
सुप्रीम कोर्ट ने सुधीरचन्द्र सरकार बनाम टाटा आयरन एण्ड स्टील कंपनी लिमिटेड (1984 एआईआर 1064) में कहा है कि पेंशन तथा ग्रेच्यूटी जिन्हें सेवान्त लाभ के रूप में पहचाना जाता है यह सामाजिक सुरक्षा के उपाय है। अब यह सुनिश्चित है कि पेंशन एक अधिकार है जिसका भुगतान नियोक्ता के विवेक पर निर्भर नहीं है और न ही नियोक्ता की इच्छा अथवा सनक पर मना किया जा सकता है। यदि पेंशन को सिविल दावे के रूप में वसूल किया जा सकता है तो इसमें कोई औचित्य नहीं है कि ग्रेच्यूटी को अलग धरातल पर रखा जाये। सेवान्त लाभ के मामले में और वसूली के दृश्टिकोण से पेंशन तथा ग्रेच्यूटी को समान समझा जाना चाहिये। हमारा संविधान कानून द्वारा शासित समाज की परिकल्पना करता है। पूर्ण विवेकाधिकार जो कि अनियंत्रित हो तथा कानून के सामने बराबरी की मनाही करता हो स्पष्ट रूप से विधि शासन का विरोधी है। विधि के समक्ष समानता तथा स्वीकृत करना अथवा कानून का लाभ न देने का पूर्ण विवेकाधिकार एक दूसरे के विरोधी हैं तथा साथ-साथ नहीं रह सकते।

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