Friday 16 December 2011

न्यायपालिका में पारदर्शिता न्यायिक शक्तियों के दुरूपयोग पर नियंत्रण है

सुप्रीम कोर्ट ने क्रान्ति एण्ड एसोसियेटेड बनाम मसूद अहमद खान की अपील सं0 2042/8 में कहा है कि इस बात में संदेह नहीं है कि पारदर्शिता न्यायिक शक्तियों के दुरूपयोग पर नियंत्रण है। निर्णय लेने में पारदर्शिता न केवल न्यायाधीशों तथा निर्णय लेने वालों को गलतियों से दूर करती है बल्कि उन्हें विस्तृत संवीक्षा के अधीन करती है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुजीबर रहमान बनाम केन्द्रीय सूचना आयोग के निर्णय दिनांक 28/04/09 में कहा है कि न्यायालय, जिन परिस्थितियों में सूचना का अधिकार अधिनियम बनाया तथा लागू किया गया है, के प्रति असावधान नहीं रह सकता। यह खुलेपन की संस्कृति को राज्य एजेन्सियों तथा लोक प्राधिकारियों के व्यापक भाग जिनके कार्य लोगों तथा उनके जीवन पर लम्बे तथा महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। सूचना मांगने वालों को वह सब कुछ दिया जाना चाहिए यदि उनका प्रकटन अधिनियम द्वारा मना नहीं है। उन्हें बिल्कुल अकर्मण्यता या लोक प्राधिकारियों या उनके अधिकारियों द्वारा दूर नहीं भगाया जाना चाहिए। यह इन लक्ष्यों को सुनिश्चित करने के लिए है कि निरपेक्ष शब्दों में दण्ड प्रावधानों के साथ-साथ समय सीमा निर्धारित की गई है। वे सूचना प्रकटन की संस्कृति को सुनिष्चित करने के लिए जिससे कि सशक्त लोकतन्त्र कार्य कर सके। न्यायालय का विचार है कि जहां तक विच्छेपित आदेश  छठे प्रत्यर्थी पर अर्थ दण्ड नहीं लगाता है अवैध घोषित किया जाता है। प्रकरण की परिस्थितियों में तीसरा प्रत्यर्थी रूपये 50000- खर्चा आज से छह सप्ताह के भीतर प्रार्थी को देगा तथा तीसरा प्रत्यर्थी रूपये 25000- अर्थ दण्ड देगा।

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