Thursday 15 December 2011

सेवा ग्रहण करने पर सरकार कर्मचारी के शरीर तथा आत्मा की मालिक नहीं बन जाती

कैप्टन एम पॉल एंथोनी बनाम भारत गोल्ड माइन्स के निर्णय दिनांक 30/03/99 में सुप्रीम कोर्ट ने  कहा है कि सरकारी सेवा ग्रहण करने पर एक व्यक्ति अपने मानव होने के नाते मौलिक अधिकारों को बन्धक नहीं रख देता या उसके मूल अधिकारों सहित सरकार के पक्ष में बदले में छोड़ नहीं देता है। सरकार मात्र इस कारण की वह नियुक्ति करने का अधिकार रखती है कर्मचारी के शरीर तथा आत्मा की मालिक नहीं बन जाती है सरकार अपने नागरिकों को कार्य का अवसर देकर राज्य के नीति निर्देशक तत्वो सहित अपने संविधान सम्मत दायित्वों की पूर्ति करती है। नियोजन ग्रहण करने पर एक कर्मचारी मात्र उसकी सेवा से सम्बन्धित नियामक उपायों पर सहमत होता है उसका सरकार या अन्य नियोक्ता यथा सरकारी उपकरण या संविधिक या स्वशासी निकाय आदि सम्बन्द्धता केन्द्र या राज सरकार द्वारा नियत सेवा नियमों या सेवा अनुबन्ध से शासित होता है। मूल अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत जीवन के अधिकार सहित या मूलरूप से मानवीय अधिकार कर्मचारी द्वारा समर्पित नहीं किये जाते हैं।

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