Saturday 11 February 2012


लंका वेंकतेस्वरालू (मृत) प्रतिनिधियों के माध्यम से बनाम आंध्र प्रदेश राज्य ( २०११ (४) सु को केसेज ३६३) में सुप्रीम कोर्ट ने पाया  है कि जब सरकारी वकील को विलम्ब की माफ़ी के लिए आवेदन पत्र प्रस्तुत करने के निर्देश दे दिए फिर भी उसने समय पर वांछित आवेदन प्रस्तुत नहीं किया|  इस देश के न्यायालय , सुप्रीम कोर्ट सहित, पर्याप्त करणों से विलम्ब माफ़ी के लिए आवेदन पत्र को उदारता पूर्वक ग्रहण करते हैं| किन्तु उदार विचार ,न्यायोंमुख विचार , सारभूत न्याय को मर्यादा के सारभूत न्याय को फैंकने के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता| विशेष रूप से जहां न्यायालय यह निष्कर्ष निकालते हैं विलम्ब का कोई औचित्य नहीं है| मर्यादा  अधिनियम की धारा ५ के अंतर्गत आवेदन पर विचार करते समय न्यायालय को असीमित या अनियंत्रित विवेकाधिकार नहीं है| समस्त विवेकाधिकार विशेष रूप से न्यायिक विवेकाधिकार कानून को ज्ञात तर्कसंगत सीमाओं के भीतर प्रयोग की जानी चाहिए | विवेकाधिकार एक प्रणालीगत ढंग से सकारण प्रयुक्त  की जानी चाहिए|
किसी सनक या कल्पना , पूर्वाग्रह या पसंद के आधार पर विवेकाधिकार का प्रयोग नहीं होना चाहिए| एक बार जब एक पक्षकार को अन्य पक्षकार की विलम्ब के लिए पर्याप्त कारण को स्पष्ट करने में विफलता व उसके आचरण से मूल्यवान अधिकार अर्जित हो गया हो तो आवेदक से मात्र पूछकर अधिकार से वंचित करना तर्कसंगत होगा जब विलम्ब प्रत्यक्षतः उपेक्षा, चूक या अकर्मण्यता  का परिणाम हो| दोनों पक्षकारों के साथ समान रूप से न्याय होना चाहिए|

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