दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगतराम बनाम अशोक कुमार के निर्णय दिनांक २२.०३.२०१० में स्पष्ट किया है कि यदि दस्तावेज विपक्षी के कब्जे में हों और मात्र विपक्षी द्वारा इस बात की इन्कारी कि दस्तावेज उसके कब्जे में नहीं हैं तो इससे याची को अपना अधिकार द्वितीयक साक्ष्य से साबित करने से नहीं रोका जा सकता| द्वितीयक साक्ष्य का साक्ष्य मूल्य और वजन साक्ष्य देने के बाद निर्धारित किया जा सकता है|
वास्तविक लोकतंत्र की चिंगारी सुलगाने का एक अभियान - (स्थान एवं समय की सीमितता को देखते हुए कानूनी जानकारी संक्षिप्त में दी जा रही है | आवश्यक होने पर पाठकगण दिए गए सन्दर्भ से इंटरनेट से भी विस्तृत जानकारी ले सकते हैं|पाठकों के विशेष अनुरोध पर ईमेल से भी विस्तृत मूल पाठ उपलब्ध करवाया जा सकता है| इस ब्लॉग में प्रकाशित सामग्री का गैर वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए पाठकों द्वारा साभार पुनः प्रकाशन किया जा सकता है| तार्किक असहमति वाली टिप्पणियों का स्वागत है| )
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