Sunday 12 February 2012

न्यायालय किसी भी चरण पर साक्षी को आहूत करने का आदेश दे सकता है

मद्रास उच्च न्यायालय ने के के वेलुसमी बनाम एन पलानीसामी ( २०११ (३) सी टी सी ४२२) में कहा है कि  न्यायालय व्यवहार प्रक्रिया संहिता आदेश १८ नियम १७ के अंतर्गत किसी भी चरण पर साक्षी को आहूत करने का आदेश दे सकता है और ऐसी शक्ति स्वप्रेरणा से अथवा मामले के पक्षकारों के निवेदन पर प्रयोग की जा सकती है | ऐसी शक्ति विवेकाधीन है  और यदा कदा ही प्रयोग की जानी चाहिए| किन्तु इस शक्ति का उपयोग किसी साक्षी, जिसकी पहले परीक्षा हो चुकी हो, की चूक की पूर्ति करने के लिए नहीं होनी चाहिए|

संहिता का आदेश १८ नियम १७ किसी भी साक्षी की पुनः मुख्य परीक्षा या पुनः प्रतिपरीक्षा के लिए आशयित नहीं है| उक्त प्रावधान प्रथामिकतः किसी साक्षी को स्वप्रेरणा या पक्षकार के आवेदन पर किसी संदेह या मुद्दे पर स्पष्टीकरण के लिए है ताकि न्यायालय स्वयं प्रश्न कर सके और उत्तर उगलवा सके| एक बार जब साक्षी को बुला लिया जाय तो पक्षकारों को भी प्रश्न रखने में सहायता के लिए अनुमत करता है|

संहिता की धारा १५१ रोजमर्रा के तौर पर प्रयोग नहीं की जानी चाहिए| यह कोई सारभूत कानून नहीं है जोकि न्यायालय को कोई शक्ति या क्षेत्राधिकार देते हो| इसे मात्र उन उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया जा सकता है जिनके लिए संहिता में गर्भित या स्पष्ट प्रावधान नहीं हो| जब संहिता में उपचार उपलब्ध हो तो धारा १५१ प्रयोग नहीं की जा सकती| यह न्यायालय का विवेकी अधिकार है|


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