Tuesday 21 February 2012

राज्य इच्छानुसार किसी भी व्यक्ति को खैरात या लाभ नहीं दे सकती


सुप्रीम कोर्ट ने अखिल भारतीय उपभोक्ता कांग्रेस बनाम मध्य प्रदेश राज्य (मनु/सुको /०३४५/२०११) के निर्णय में कहा है कि राज्य या इसकी  एजेंसियां राजनैतिक संस्थानों/या राज्याधिकारियों  की इच्छानुसार किसी भी व्यक्ति को खैरात  या लाभ  नहीं दे सकती| ऐसा लाभ  सशक्त, पारदर्शी , दृष्टव्य और निश्चित नीतिगत सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए |वर्तमान प्रकरण में भूमि के आरक्षण हेतु एक्स द्वारा मेमोरिअल ट्रस्ट के संयोजक की हैसियत में आवेदन किया गया किन्तु प्रत्यार्थिगण ने कोई भी ऐसा दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया जिससे यह स्थापित होता हो कि आवेदन की तिथि को यह ट्रस्ट पंजीकृत था| ३० एकड़ भूमि आरक्षित करने और २० एकड़ भूमि आवंटित करने से पूर्व अखबार में या अन्य किसी उपयुक्त माध्यम में उपयुक्त संस्थानों से आवेदनपत्र आमंत्रित करने हेतु कोई विज्ञापन नहीं दिया गया और प्रत्येक अर्थ में  राजनैतिक और राज्य के गैरराजनैतिक कार्यकारियों ने इस प्रकार भूमि को आवंटित किया मानों कि वे मेमोरिअल ट्रस्ट को भूमि आवंटन के कर्ताव्यधीन हों| सभी ट्रस्टी राजनैतिक दल विशेष के सदस्य रहे हैं और भू आरक्षण व आवंटन की समस्त प्रक्रिया और अधिकांश प्रीमियम की छूट इसलिए दी गयी कि राज्य के राजनैतिक कार्यकारी प्रत्यर्थी संख्या का ५ का पक्षपोषण करना चाहते थे| अतः आक्षेपित भूमि का प्रत्यर्थी संख्या ५ को आवंटन संविधान के अनुच्छेद १४ और मध्य प्रदेश नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम ,१९७३ के प्रावधानों के विपरीत है|


भोपाल विकास योजना में जो भूमि आरक्षित की गयी एवं प्रत्यर्थी संख्या ५ को आवंटित की गयी को को सार्वजानिक और अर्ध सार्वजानिक ( स्वास्थ्य) उद्देश्यर्थ दर्शाया गया था |राज्य सरकार ने अधिनियम की धारा २३ क १ (क) की शक्तियों के प्रयोग में प्रत्यर्थी संख्या ५ द्वारा संस्थापित संस्था को सुविधा देने के लिए योजना को संशोधित किया और न कि भारत सरकार या राज्य सरकार या उसके उपक्रमों के लिए | भू उपयोग परिवर्तन का अभ्यास जोकि योजना  में संशोधन करता है मात्र एक कोरी औपचारिकता है क्योंकि भूमि का प्रत्यर्थी संख्या ५ को आवंटन  अधिनियम की धारा २३ क १ (क) के अंतर्गत अधिसूचना जारी होने से २ वर्ष पूर्व ही कर दिया गया था| अतः योजना में संशोधन अधिकार क्षेत्र  से बाहर था| खंड पीठ का अछेपित आदेश निरस्त किया जाता है, प्रत्यर्थी संख्या ५ को  २० एकड़ भूमि का आवंटन  अवैध घोषित कर निरस्त किया जाता है | अपील अनुमत की गयी|

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