Friday 3 February 2012

भारत में न्यायिक सुधार की संभावनाएं और चुनौतियाँ


हमारे न्यायालयों और वकीलों के मध्य बहुत सी बातें अस्वस्थ परंपरा के रूप में प्रचलित हैं| किन्तु इन सबका एक ही मूल कारण है, वह  यह है  कि न्यायिक निकाय स्वविनियमित है| स्वविनियमन वास्तव में कार्य नहीं करता है| इसका समाधान वकीलों एवं न्यायाधीशों का मात्र बाहरी विनियमन है| प्रत्येक  अन्य पेशे, जैसे चिकित्सा,  का विनियमन प्रशासनिक एजेंसी जोकि सरकार  के कार्यपालकीय शाखा के अधीन हो द्वारा किया जाता है | मात्र वकील ही स्व निर्मित बार कौंसिल द्वारा विनियमित होते हैं| चूँकि वे अपने आप विनियमित होते हैं अतः वास्तव में वहाँ कोई विनियमन नहीं है| न्यायपालिका से जुड़े लोगों का कहना होता है कि न्यायपालिका का भयमुक्त व स्वतंत्र होना आवश्यक है किन्तु वे यह भूल जाते हैं कि न्यायाधीश नियुक्त होते समय ही यह शपथ लेते हैं कि वे रागद्वेष और भयमुक्त होकर कार्य करेंगे और जहां तक स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर कार्य करने का प्रश्न है स्वच्छ शासन के लिए यह मात्र न्यायाधीशों के लिए ही नहीं अपितु  प्रत्येक लोक सेवक के लिए यह आवश्यक है| इस प्रकार न्यायाधीश किसी भी प्रकार से सुरक्षा की विशेष श्रेणी की पात्रता नहीं रखते हैं|
न्यायालयों के स्वविनियमन के सशक्त कुचक्र को तोडने के लिए भरसक प्रयत्न की आवश्यकता है| बहुत से ऐसे वकील हैं जो कानून तोडकर बिना किसी भय के भारी धन कमा रहे हैं| बहुत से ऐसे न्यायाधीश हैं जो राजा की शक्तियों का सानंद उपभोग कर रहे हैं और जो चाहे कर रहे हैं क्योंकि उन्हें कानूनन और नैतिक रूप से जिम्मेदार ठहराये जाने का कोई भय नहीं है| ये लोग शक्तिसंपन्न और निरापद  हैं| हमें न्यायालयों के किसी स्वतंत्र निकाय द्वारा बाहरी विनियमन के विषय पर गहन चिंतन की आवश्यकता है| हम ऐसे समाज में रह रहे हैं जहाँ पथभ्रष्ट वकील समृद्ध हो रहे हैं और इस पर विराम लगाने की आवश्यकता है| माननीय सुप्रीम कोर्ट भी राजा खान के मामले में इस स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त कर चुका है| वकीलों के पेशेवर आचरण के नियम और न्यायाधीशों के आचरण के नियम उच्च नैतिक मानकों की औपचारिक  आवश्यकता अभिव्यक्त करते हैं| दुर्भाग्य से ये उच्च नैतिक मानक लागू नहीं किये जा रहे हैं| इसका अभिप्राय यह नहीं है कि समस्त नियमों को ही बदलने की आवश्यकता है अपितु आवश्यक यह है कि जो भी नियम विद्यमान हैं उन्हें बलपूर्वक और निष्ठा से प्रभाव में लाया जाय|
इन नियमों के प्रवर्तन में समस्या यह है कि सरकारी न्यायिक निकाय स्वविनियमित है| इस कारण न्यायाधीश एवं वकील एक विषम स्थिति में हैं और वे परस्पर प्रतिदिन साथ साथ कार्य करते हैं | एक वकील जो किसी न्यायाधीश या साथी वकील के विरुद्ध शिकायत करे वह आगे उसी समुदाय में प्रभावी रूप से  कार्य नहीं कर सकेगा | ईमानदार वकील को अपना मुंह बंद रखना पडता है और अनुचित व्यवहार को चुपचाप सहन करना पडता है|
यदि स्वविनियमन हटा लिया जाय और वकील व न्यायाधीशों का विनियमन कार्यपालिका के अधीन किसी स्वतंत्र एजेंसी से करवाया जाय तो न्यायधीश और वकील अपने मित्रों और साथियों पर नैतिकता के उच्च मानक लागू करने के दायित्व भार से मुक्त हो सकेंगे| इससे ईमानदार वकीलों को इस बात की स्वतंत्रता मिलेगी कि प्रत्येक पर लागू कानून समान है और कानून वास्तव में  लागू किये जा रहे हैं| निष्ठावान वकीलों को यह भय नहीं रहेगा कि किसी साथी वकील के विरुद्ध शिकायत करने पर उन्हें कालीसूची में शामिल कर उनका बहिष्कार कर दिया जायेगा| एक संवेदनशील मामले में इलाहाबाद उच्च  न्यायालय ने कहा भी है कि प्रत्येक को यह भलीभांति  समझ लेना चाहिए कि न्यायपालिका जनता की  सेवा के लिए है न कि न्यायाधीशों और वकीलों की सेवा के लिए|
न्यायालयों का स्वविनियमन असंवैधानिक भी है| हमारे पूर्वजों ने नियंत्रण और संतुलन की अवधारणा में विश्वास किया था जिससे शासन के तीनों  स्तंभों को इस आशय से शक्ति और दायित्व दिया गया था कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि  अन्य दो शाखाएं ईमानदार व जवाबदेह बनी रहें| इस प्रणाली से यह सुनिश्चित होता है कि कोई शाखा राजा की शक्तियों को छीन न ले| किन्तु न्यायिक शाखा स्वविनियमन के बहाने से  इस नियंत्रण एवं संतुलन की प्रणाली से बाहर खिसक गयी| स्वविनियमन असंवैधानिक है  और विधायिका का संविधान के प्रति यह  कर्त्तव्य है कि वह न्यायालयों पर बाहरी नियंत्रण स्थापित करे| यद्यपि संघीय सरकार ने उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के आचरण पर नियंत्रण के लिए न्यायिक दायित्व अधिनियम बनाने की पहल की है किन्तु राज्य सेवा के न्यायाधीशों के अनुशासन हेतु राज्य सरकारों को अपना दायित्व निभाना चाहिए|
जिस तरह से सर टॉमस ग्रेशम ने कटेफटे नोटों और अच्छे नोटों के लिए कहा है कि बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है ठीक उसी प्रकार यह स्मरण रखना चाहिए कि यदि बेईमान वकील समृद्ध होते रहे तो ईमानदार वकील कभी भी मामले जीत नहीं पाएंगे| यह नैतिकता के धरातल पर एक स्पर्धा दौड़ है| जनता का अधिकार है कि उसे ईमानदार वकील, ईमानदार न्यायालय और न्यायाधीश मिलें | जनता  का अधिकार वकीलों के लाभ से पहले आता है| न्यायालय लोगों की सेवा के लिये  हैं न कि उन पर शासन करने के लिए|

7 comments:

  1. is the secretly appointment of judges by SC colligium system not violating Art 124 ?. the president of india has been reduced to a subordinate status of the colligium senior most five Supreme court judges. india is perhaps the only democracy where judges appoint the judges and that too secretly. becuase we only come to know after a judge is appointed. thereafter no one can speak against that judge even if there are incidents of misconduct and immpossible to remove him/her. there should be a list of persons being considered as the SC judge published for people to send comments to the committe/colligium. then only the committee/colligium should send the name to the president of india for appointment as per Art 124.

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    1. DEAR MANI RAM JI
      YOU HAVE STATED THE TRUTH AS THIS IS GOING ON AS THE POLICE & MAGISTRATES, IGNORE SUPREME COURT DIRECTION AS YOU HAVE STATED IN THE CASE OF JOGENDRA KUMAR.------ VAKIL ALSO NEED TO EARN THROUGH THIS UNHOLY ATTITUDE OF POLICE & MAGISTRATES, WHICH IS NOT IN THE INTEREST OF COMMON MAN. BUT WHO WILL BELL THE CAT. ------AS SUPR. COURT HAS HELD, IF A PERSON IS ARRESTED BY POLICE AT ANY PLACE/OR FROM HIS HOME AND THE CRIME IS NON COGNIGABLE, IT IS THE PIOUS DUTY OF THE POLICE TO GRANT THE WOULD BE ACCUSED AND RELEASE HIM ON BAIL & THAT ACCUSED BE ALLOWED TO PHONE A RELATIVE/FRIEND TO STAND SURITY AND THEN & THERE THE POLICE SHOULD GRANT JAMANAT & THE ACCUSED BE SET FREE. IN THIS WAY MORE THAN 50% CASES WILL BE REDUCED AT THANA LEVEL ITSELF & THE POLICE FORCE CAN BE ALLOTTED MORE NECESSARY WORK.----DR JN SHARMA ADVOCATE/HUMANRIGHTS ACTIVIST--- 2 ASHOK LANE CIVIL COURT, LUCKNOW-226001 U.P. MOB: 09335231213

      I HAVE ALSO NOTED ANOTHER UNHOLY JOB/ SYSTEM BEING ADOPTED BY POLICE. ------IN MY PRESENCE, A WOMAN WAS FALSELY IMPLICATED & TAKEN INTO CUSTODY FROM HER HOME( ON ALLEGED NON-COGNIZABLE OFFENCE, OR SAY FOR NO CRIME). THE POLICE ENTERED HER HOUSE WITHOUT ANY WARRENT.--- HOWEVER, NO FEMALE CONSTABLE WAS ACCOMPANIED THE TEAM TO ARREST HER.---- SHE WAS KEPT FOR MANY DAYS IN LOCK UP OF THANA AND WAS PRODUCED BEFORE THE COURT.---- I WAS STUNNED TO FIND THE DEATILS IN THE FIR IN WHICH POLICE HAS FALSELY SHOWN THAT SHE WAS ARRESTED NEAR A MARKET ROAD & THE WITNESSES SHOWN WERE EITHER INFORMER OR POLICE WITNESSES OR OTRHER WITNESS WHO ARE CRIMINAL.---- IF POLICE HAVE TO SHOW IN THE FIR THE ARREST AT HOME, THEN POLICE CAN NOT DARE TO SHOW BOGUS PEOPLE AS WITNESSES AS NONE OF THE PERSON/NEIGHBOUR CAN STAND AS POLICE WITNESS. --- THIS UNHOLY ARRESTS & WITNESS MATTER IS GOING ON FOR RIGHT FROM THE BRITISH PERIOD BUT NO NGO HAS SO FAR COME OUT TO LODGE POTEST OR LODGE FIR AGAINST THE POLICE FOR THIS FALSE & BOGUS ARREST & THIS IS HOW THE POLICE IS EARNING LOT OF MONEY FROM THE COMMON PEOPLE, BY HARASSING PEOPLE. ---- I HAVE DECIDED TO MAKE A COMPLAINT TO PRINCIPAL SECRETARY HOME FOR THIS UNHOLY ARRESTS MADE BY POLICE-------( YES ONE THING IS COMING TO MY INFORMATION , THAT THE LADY IS UNABLE TO PROVIDE ME ANY MOHALLA WITNESS AS SHE IS SAYING THAT POLICE IS THREATENING HER & HER TWO WITNESSES WITH DIRE CONSEQUENCES)--- DR JN SHARMA ADVOCATE/HUMANRIGHTS ACTIVIT

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    2. The Hon'ble Supreme Court has dealt this menace in the case of CBI vs Kishore singh. You may rely upon the same. The important part of the case has been published already on the blog.

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  2. इस आलेख से असहमतियाँ हैं। इतनी अधिक कि उन का उत्तर केवल स्वतंत्र आलेख से ही दिया जाना संभव है। समय मिलने पर उत्तर देने का प्रयास करूंगा।

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  3. there are some judges who gave judgement and order solely on the so called statement of a govt. counsel, when the govt. counsel was not even present in the court room to argue. that means the case was decided outside the court room in collusion with the govt. counsel. IS IT NOT MISCONDUCT of the judge for which he should be punished. but the problem for an ordinary citizen is , how to punish such judge who has violated the constitution/oath ?

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  4. आदरणीय, मनीराम शर्मा जी, आपका ब्लॉग बहूत ही उपयोगी है कृपया अपना फेसबुक बनाकर भी इसे प्रचारित करने का कस्ट करे. हो सके तो संपर्क हेतु ई मेल आई डी भी ब्लॉग पर उपलब्ध करना चाहे.

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