सुप्रीम कोर्ट ने जीतसिंह मोहरसिंह बनाम मुनिसिपल कमेटी ( १९६१ क्री ला ज २७२) में कहा है कि यह निष्कर्ष निकालना कि अभियुक्त इस आधार पर बरी होने का पात्र था इससे न्याय हेतुक की प्रोन्नति नहीं होती है| इस सन्दर्भ में यह भी सुसंगत है कि कानून को न्यायालयों द्वारा लागू किया जाता है और पक्षकार इसका अभिकथन करने के दायित्वाधीन नहीं हैं| एक विशुद्ध विधि का प्रश्न, पूर्व में वादकरण के किसी भी चरण पर बिना उठाये भी, को उच्च न्यायालय में और कई बार तो सुप्रीम कोर्ट में भी उठाया जा सकता है व न्यायालय से अपेक्षा है कि वह कानूनी प्रावधान पर ध्यान दे चाहे पक्षकार उस पर निर्भर रहता है अथवा नहीं| इसलिए यदि एक अधिसूचना में भारतीय सीमाक्षेत्र में प्रभावी कोई कानून समाहित हो तो न्यायालयों से मात्र अपेक्षा ही नहीं अपितु उसका संज्ञान लेने व लागू करने का कर्तव्य है यदि यह मामले को आवृत करता है|
वास्तविक लोकतंत्र की चिंगारी सुलगाने का एक अभियान - (स्थान एवं समय की सीमितता को देखते हुए कानूनी जानकारी संक्षिप्त में दी जा रही है | आवश्यक होने पर पाठकगण दिए गए सन्दर्भ से इंटरनेट से भी विस्तृत जानकारी ले सकते हैं|पाठकों के विशेष अनुरोध पर ईमेल से भी विस्तृत मूल पाठ उपलब्ध करवाया जा सकता है| इस ब्लॉग में प्रकाशित सामग्री का गैर वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए पाठकों द्वारा साभार पुनः प्रकाशन किया जा सकता है| तार्किक असहमति वाली टिप्पणियों का स्वागत है| )
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment