Saturday 6 August 2011

अपराधी का बचना सामाजिक प्रदूषण है

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश बनाम नारायणसिंह (एआईआर 1989 एस सी 1789)  में कहा है कि धारा 7 (1) में प्रयुक्त शब्दावली यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर, साशय या अन्यथा धारा 3 के अन्तर्गत आदेश का उल्लंघन करता है। यह धारा व्यापक रूप से शब्दजड़ित है जिससे इसके भीतर मात्र जानबूझकर या साशय  किया गया उल्लंघन ही नहीं आता है अर्थात बिना आशय के किया गया भी शामिल है। अतःयदि धारा 3 का तथ्य निर्यात करना या निर्यात का प्रयत्न करने का साक्ष्य रिकॉर्ड पर मौजूद हो तो बिना वैध लाईसेन्स के खाद के निर्यात के लिए आशय घटक एक व्यक्ति की दोष सिद्धि के लिए आवश्यक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा राज्य बनाम राजेश्वर राव (एआईआर 1992 एस सी 240) में कहा है कि खाद्य अपमिश्रण रोकथाम अधिनियम स्वास्थ्य को खतरा रोकने का कल्याणकारी विधायन है। अपमिश्रित खाद्य के सेवन में आशय एक आवश्यक घटक नहीं है। यह एक सामाजिक बुराई है तथा अधिनियम अपराध करने को मना करता है। आवश्यक बात विक्रेता द्वारा क्रेता को विक्रय करना है। अभियोजन के द्वारा यह साबित करना पर्याप्त है कि विक्रेता ने क्रेता को अपमिश्रित खाद्य पदार्थ(खाद्य निरीक्षक सहित)  बेचा है और खाद्य निरीक्षक ने यह अधिनियम के प्रावधानों की सख्त अनुपालना में खरीदा है।
सुप्रीम कोर्ट ने मनोहरलाल बनाम विनेश आनन्द के निर्णय दिनांक 09.04.01 में स्पष्ट किया है कि अपराध कारित होने पर अपराधी का पीछा करना सामाजिक आवश्यकता की अनुसेवा करना है। एक अपराधी का बच निकलना समाज सहन नहीं कर सकता क्योंकि वह एक सामाजिक प्रदूषण की स्थिति लायेगा जो कि न तो वांछनीय है और न ही न्यायोचित है और यह बिना मान्य स्थिति के है और अपराध शस्त्र में मान्य स्थिति का विचार पूर्णतया विदेशी है।

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