Sunday 28 August 2011

अभियोजन स्वीकृति एवं वास्तविक न्याय

सुप्रीम कोर्ट ने बशीर उल हक बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1953 एआईआर 293) में कहा है कि एक ही संव्यवहार में दो अलग-अलग अपराध हुए हैं, एक धारा 409 के अन्तर्गत दुर्विनियोग का अपराध है और दूसरा धारा 477ए के अन्तर्गत जिसके लिए राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक है। इसमें बाद के अपराध का प्रसंज्ञान नहीं लिया जा सकता। यह अपीलार्थी की अन्वीक्षा के लिए कोई अवरोध नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रसिद्ध प्रकरण अब्दुल रहमान अंतुले बनाम आर.एस. नायक (1992 एआईआर एस सी 1701) में स्पष्ट किया है कि अन्वीक्षण के अधिकार से मनाही की आपति तथा उपचार के लिए पहले उच्च न्यायालय ऐसे अभिवचन को व्यवहृत करता है तो भी सिवाय गंभीर मामलों तथा आपवादिक प्रकृति में सामान्यतया कार्यवाही नहीं रोकी जानी चाहिए । उच्च न्यायालय में ऐसी कार्यवाही प्राथमिकता के आधार पर निपटायी जानी चाहिये। यह सही है कि यह राज्य का कर्तव्य है कि वह त्वरित अन्वीक्षण सुनिश्चित करे और राज्य में न्यायपालिका शामिल है किन्तु बजाय पाण्डित्यपूर्ण के वास्तविक तथा व्यावहरिक विचारधारा इस प्रकार के मामलों में अपनायी जानी चाहिए ।

1 comment: