Thursday 25 August 2011

औपचारिकताएं अभियोजन में बाधक नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने धर्मेश उर्फ नानू नितिन भाई शाह बनाम गुजरात राज्य के निर्णय दिनांक 01.08.02 में कहा है कि यदि हमने इस तर्क पर विचार कर भी लिया तो याची को कोई सारभूत लाभ नहीं मिलेगा। यह मानते हुए याची अपने तर्क में ठीक है अधिकतम यही हो सकता है कि मामला मजिस्ट्रेट के पास अभियोजन द्वारा स्वीकृत आदेश फाईल किये जाने के पश्चात कमीटल की नई प्रक्रिया द्वारा गुजरेगा। फिर भी मामला पुनः सत्र न्यायालय के पास आयेगा। इस औपचारिकता के साथ अनुपालना याची को बिना किसी लाभ के अन्वीक्षण में देरी के रूप में परिणित होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य बनाम डी.ए.एम. प्रभू के निर्णय दिनांक 11.02.2009 में कहा है कि अकेली कम्पनी का अभियोजन किया जा सकता है, प्रभारी अधिकारी मात्र का अभियोजन किया जा सकता है। मिलीभगत वाले अधिकारी का व्यक्तिशः अभियोजन किया जा सकता है। एक कुछ या सभी का अभियोजन किया जा सकता है। यह कोई कानूनी विवशता नहीं है कि प्रभारी अधिकारी या कम्पनी का अधिकारी अभियोजित नहीं होगा जब तक की कम्पनी के साथ उसे जोड़ा नहीं जाय।

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