Saturday 20 August 2011

सूचना कानून की गुत्थियां

केन्द्रीय सूचना आयोग के अनुसार वर्ष २००७-८ से लेकर २०१०-११ तक केंद्रीय सूचना अधिकारियों को १८३२१८१ सूचनार्थ आवेदन किये गए जिनमें से १७३३६२० प्रकरणों में सूचनाएँ प्रदान की गयीं अर्थात ९८५६१ प्रकरणों में सूचनाएँ नहीं दी गयीं| दुर्भावनापूर्वक सूचना देने से मना करने, बिना उचित कारण के विलम्ब करने, आवेदन स्वीकार करने से मना करने या भ्रामक या असत्य सूचना देने पर  केन्द्रीय सूचना आयोग को अधिकतम रूपये २५०००/ अर्थदंड लगाने का अधिकार है| स्मरण रहे कि सम्पूर्ण सूचना का अधिकार अधिनियम में कहीं भी विवेकाधिकार शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है| यदि विधायिका आयोग को विवेकाधिकार देना चाहती तो वह ऐसा स्पष्टतया कर सकती थी किन्तु विधायिका का ऐसा कोई अभिप्राय नहीं रहा है| किन्तु फिर भी  आयोग द्वारा अर्थदंड नहीं लगाया जा रहा है| यद्यपि जो आंकडे आयोग ने सूचना प्रदान करने के दिए हैं वे तो सूचना अधिकारियों के अनुसार हैं, दी गयी सूचना कितनी संतोषजनक अथवा उद्देश्यपरक है यह तो आवेदक ही अच्छी तरह बता सकते हैं |

इसी अवधि में आवेदकों से रुपये २२१५६३६३ की राशि वसूली गयी जबकि दोषी सूचना अधिकारियों से मात्र रुपये ४४२३२२१ अर्थदंड के रूप में वसूली गयी है| यदि यह माना जाय कि औसतन प्रति सूचना अधिकारी अधिकतम राशि वसूली गयी है तो यह प्रकट होता है कि सूचना हेतु मना करने वाले ९८५६१ में से मात्र १७७ अधिकारियों को ही दण्डित किया गया है और शेष दोषी अधिकारियों को आयोग द्वारा अभयदान दे दिया गया है| यह स्थिति आयोग की प्रासंगिकता, निष्पक्षता और उपादेयता पर प्रश्नचिन्ह लगाती है| इसके अतिरिक्त आयोग में ऐसे भी प्रकरण हैं जिनमें अर्थदंड आदेश पारित कर दिए गए हैं किन्तु उनकी न तो पत्रावलियां आयोग में  उपलब्ध हैं और न ही उनमें वसूली की कोई  कार्यवाही प्रस्तावित है| आयोग के उक्त चरित्र से परिलक्षित होता है कि वह  सूचना कानून की धार को भोंथरा बनाने में पूर्ण ऊर्जा से संलग्न है| आयोग में बढ़ते प्रकरणों के मूल में यही कारण है |

2 comments:

  1. how to proceed aginst the ICs for violating the Act by making a mandatory provision of penalty into discetionary. ICs do not even issue notices for delay of more than 30 days. what penalty the ICs face if they do not obey the Act ?.

    ReplyDelete
  2. The hon'ble Delhi high Court has cleared the deck in the matter of Mujiburrrehan vs CIC. The legal remedies available in case of Public Servants are also available in case of Ics. You may go through my postings under the label of misconduct by Public Servants.

    ReplyDelete