Friday 26 August 2011

अभियुक्त को दस्तावेज निशुल्क दिए जाने चाहिए

राजस्थान उच्च न्यायालय ने रामनाथ बनाम राजस्थान राज्य (1989 क्रि.ला.रि. राज0 785) में कहा है कि डूप्लीकेट कैसेट देने से मनाही का तर्क ठीक प्रतीत नहीं होता। न्यायालय मे कैसेट चलाकर सुनना बचाव पक्ष तैयार करने के लिए वांछित सुविधा नहीं देगा। दं.प्र.सं. की धारा 207 में विशिष्ट उल्लेख है कि पुलिस द्वारा रिपोर्ट और अन्य प्रलेख अभियुक्त को बिना देरी के तथा निःशुल्क दिये जायेंगे। जब अभियुक्त से इन प्रलेखों का कोई शुल्क नहीं लिया जा सकता और प्रलेखों में बोला गया प्रलेख शामिल है तब कैसेट अभियुक्त को निःशुल्क दी जानी चाहिये। उसे अपने खर्च पर यह तैयार करवाने का कहना न्यायोचित नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य बनाम एस जे चौधरी (1996 क्रि.ला.रि. सु.को. 286)  में कहा है कि वर्तमान मामले में हस्तलिपि में धारा 45 में टाईपलिपि भी शामिल है। हम यह जोड़ते हैं कि टेलीग्राफ शब्द में टेलीफोन भी शामिल है जबकि 1863 के अधिनियम में जबकि टेलीफोन का आविष्कार नहीं हुआ था। 1872 के अधिनियम में हस्तलिपि में इसे हम वर्तमान मामले में टाईपलिपि पढेंगे ऐसा इसलिए है कि लगभग एक शताब्दी पूर्व अधिनियम में हस्तलिपि में टाईपलिपि शामिल है क्योंकि हाथ से लिखने के बजाय टाईप से लिखना सामान्य हो गया है और यह परिवर्तन टाईपराईटरों ने और जब अधिनियम 1872 में लागू हुआ था उसके बाद सामान्य प्रचलन होने से है। यह एक अतिरिक्त हमारे लिए कारण है कि टाईपराईटर विशेषज्ञ की राय धारा 45 के परिपेक्ष्य में स्वीकार्य है।

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