Sunday 14 August 2011

अन्वीक्षण के लिए विश्वसनीय सामग्री होना आवश्यक है

मधुबाला बनाम सुरेश कुमार (1997 क्रि.ला.ज.3757) में स्पष्ट कहा गया है कि आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुथुराजू  सत्यनारायण बनाम आन्ध्रप्रदेश सरकार (1997 क्रि.ला.ज. 374 आंध्र) में कहा है कि यदि एक पुलिस थाने का प्रभारी का विचार है तथा इस आशय की अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करता है कि अभियुक्त को अन्वीक्षण पर भेजने का कोई मामला नहीं बनता है तो कोई प्राधिकारी उसे विचार बदलने और आरोप पत्र दाखिल करने के लिए निर्देश नहीं दे सकता । फिर भी मजिस्ट्रेट पर पुलिस रिपोर्ट को स्वीकारने का कोई दायित्व नहीं है, यदि वह पुलिस के विचार से असहमत है ।
सुप्रीम कोर्ट ने एस.एस. छीना बनाम विजय कुमार महाजन (मनु/सुको/0585/2010) में कहा है कि दुष्प्रेरण में एक व्यक्ति की ऐसी मानसिक प्रक्रिया समाहित है जिसमें एक व्यक्ति को कुछ करने के लिए उकसाया जाता है या मदद की जाती है। एक व्यक्ति द्वारा अभियुक्त की ओर से उकसाने या आत्महत्या करने में सकारात्मक कार्य के बिना दोषसिद्धि टिक नहीं सकती। प्रस्तुत मामले में अपीलार्थी के विरूद्ध कोई भी विश्वसनीय सामग्री या साक्ष्य के अभाव में दोष सिद्धि टिक नहीं सकती। धारा 306 के अन्तर्गत अपराध करने का स्पष्ट आशय होना चाहिए। अपीलार्थी के विरूद्ध धारा 306 भा.द.सं. के आरोप विरचित करने का आदेश गलत एवं अटिकाऊ है। अतः अपीलार्थी के विरूद्ध किसी विश्वसनीय सामग्री के अभाव में आपराधिक अन्वीक्षा का सामना करना उचित एवं न्यायपूर्ण नहीं होगा। परिणामतः धारा 306 के तहत आरोप विरचित करने का आदेश तथा समस्त कार्यवाहियां निरस्त व अपास्त किये जाते है।

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