Sunday 7 August 2011

सूचना पर भी संज्ञान लिया जा सकता है

सुप्रीम कोर्ट ने आर.आर. चारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1951 एआईआर 207) में कहा है कि धारा 190 की शब्दावली से स्वस्पष्ट है कि एक व्यक्ति के विरूद्ध कार्यवाही अपराध के प्रसंज्ञान मजिस्ट्रेट द्वारा धारा में दी गई तीन संभाव्यताओं में प्रारम्भ होती है। प्रथम संभावना असंज्ञेय अपराध जैसा कि व्यथित व्यक्ति द्वारा परिवाद पर संस्थित होती है। दूसरी स्थिति पुलिस रिपोर्ट पर जो कि एक मामले में संज्ञेय अपराध में पुलिस द्वारा अनुसंधान पूर्ण करने पर और मजिस्ट्रेट के पास आदेशिका जारी होने के लिए आने पर। तीसरी स्थिति वह है जब मजिस्ट्रेट स्वयं अपराध का संज्ञान लेकर आदेशिका जारी करता है।
आन्ध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने डी.राजगोपाला राव बनाम आन्ध्रप्रदेश राज्य (एआईआर 1960 आन्ध्र 184) में कहा है कि यह माना जाना चाहिए कि पुनरीक्षण याचिका में समाहित सूचना धारा 190 (1) (सी) के अर्थ में सूचना है और जिला मजिस्ट्रेट मामले का प्रसंज्ञान लेने का अधिकारी है तथा जांच व अन्वीक्षण के लिए अपने अधिनस्थ मजिस्ट्रेट को अन्तरण कर सकता है।

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