Monday 15 August 2011

आपराधिक कार्यवाही पर नियंत्रण का मजिस्ट्रेट को अधिकार

राजस्थान उच्च न्यायालय ने रैनबैक्सी लेबोरेट्री बनाम इन्द्रकला (1997 (88)) कंपनी केसेज 348 (राज.) में कहा है कि एक बार याची कम्पनी और उस पर लागू कानून ने इसके लाभ के लिए पूरे देश में इसके शेयरों की खरीद बिक्री के सौदों की अनुमति दे दी तो ऐसा व्यवसाय इस तर्क से विफल करने नहीं दिया जा सकता कि लोगों को जहां कम्पनी का कार्यालय स्थित है मात्र वहां राहत दी जा सकती है। इस प्रकार की विचारधारा अधिनियम के तथा अन्य सम्बन्ध अधिनियमों के सुसंगत प्रावधानों को विफल करना होगा। यह आपति कि मजिस्ट्रेट को क्षेत्राधिकार नहीं है टिकने योग्य नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने धारीवाल टोबेको प्रोडक्टस लि0 बनाम महाराष्ट्र  राज्य के निर्णय दिनांक 17.12.08 में कहा है कि जब परिवाद में कोई अपराध प्रकट नहीं होता तो एक परिवाद को निरस्त करने के लिए कहा जाय तब न्यायालय तथ्य के प्रश्न की जांच कर सकता है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने स्वातीराम बनाम राजस्थान राज्य (1997(2) क्राईम्स 148 राज.) में कहा है कि धारा 157 अनुसंधान अधिकारी पर यह कर्त्तव्य अधिरोपित करती है कि सम्बद्ध मजिस्ट्रेट के पास संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट तुरन्त भेजे। रिपोर्ट को मजिस्ट्रेट के पास भेजने का उद्देश्य उसे संज्ञेय अपराध के अनुसंधान से सूचित रखना है ताकि यदि आवश्यकता हो तो वह अनुसंधान को नियंत्रित कर सके व उचित दिशा निर्देश दे सके। मात्र एफआईआर के प्रेषण  के विलम्ब से अभियोजन की पूरी तरह फेंकने का कोई आधार नहीं है। मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेजना दी गई परिस्थिति में संदेह  उत्पन्न करती है कि विचार विमर्श तथा सोच समझ के बाद एफआईआर दर्ज की गई तथा यह इसमें दर्ज समय के काफी समय बाद दर्ज हुई और यह प्रकट करती है कि अनुसंधान उचित एवं सही नहीं है।

JAI HIND
                                          



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