Thursday 18 August 2011

झूठा आरोप

डॉ0 एस दत बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1996 एआईआर 523) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शब्द भ्रष्टतापूर्वक बेइमानी या छलपूर्वक का समानार्थी न होकर विस्तृत है। उनके अनुसार यदि आचरण छलपूर्वक या बेईमानी पूर्वक न हो और यदि यह अन्यथा दोषारोपण योग्य हो या अनुचित हो तो भी शामिल है। यह देखा गया है कि डॉ0 दत का कार्य दण्ड संहिता की धारा 192 तथा 196 द्वारा आच्छादित है। यदि डॉक्टर ने न्यायालय में झूठी गवाही दी या उसने झूठी गवाही बनायी तो यह स्पष्ट रूप से धारा 193 का अपराध है। यदि उसने झूठी गवाही काम में ली तो धारा 196 का अपराध किया गया। इन अपराधों के विषय में संज्ञान लिया  जाने से पूर्व ( धारा १९५ दण्ड प्र स के अनुसार ) सत्र न्यायाधीश  द्वारा लिखित शिकायत होना आवश्यक है।
बम्बई उच्च न्यायालय ने पेपा बालाराव देसाई (एआईआर 1926 बम्बई 284) में स्पष्ट किया है कि हमारे निर्णयन में प्रार्थी का कथन जहां तक कि वह धारा 211( मिथ्या दोषरोपण) से सम्बन्ध रखता है ठीक है और इस पर जिला मजिस्ट्रेट द्वारा झूठा आरोप लगाने की शिकायत दर्ज करवाना जब तक वह कानून के अनुसार शिकायत की जांच नही कर ले जिसकी प्रार्थी ने शिकायत की है, खुला नहीं है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रघुनाथसिंह बनाम राज्य (एआईआर 1950 इला0 471) मे स्पष्ट किया है कि आरोपित व्यक्ति इस बात के लिए स्वतन्त्र नहीं है कि उसने कथित अपराध दूसरे व्यक्ति के उकसाने पर किया।

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