उच्च न्यायालय ने ई.वी.कुम्हामू बनाम फूड इन्स्पेक्टर (1989 क्रि.ला.ज.2340) में कहा है कि अन्वीक्षण में अभियुक्त की दोषिता या निर्दोषिता निर्धारित की जाती है न कि आरोप विरचित करते समय। इसलिए इस न्यायालय को विषय वस्तु का भारांकन करने या मूल्यांकन करने के लिए विस्तृत जांच करने की आवश्यकता नहीं है। न ही विभिन्न पहलुओं में गहराई तक जाने की आवश्यकता है जो कुछ न्यायालय को करना है वह रिकॉर्ड पर विषय वस्तु की साक्ष्यकीय मूल्यांकन जिसे कि यदि सामान्यतया स्वीकार किया जाता तो अपराध से अभियुक्त का तर्कसंगत सम्बन्ध हैं। इससे अधिक जांच की आवश्यकता नहीं है। जहां कानून की रचना सार्वजनिक कुचेष्टा को टालना या रोकना हो लेकिन प्रावधान विशेष को अक्षरशः लागू करना उसे रचना को विफल करेगा। उस प्रावधान को निर्देशात्मक ठहराया जाना चाहिये ताकि पूर्वाग्रह का प्रमाण प्रावधान की गैर अनुपालना में शिकायत किये गये कृत्य को अवैध ठहरने के लिए आवश्यक हो। अन्वीक्षण राज्य तथा अभियुक्त के प्रति उचित होना चाहिए। किसी भी मामले पर त्रुटिहीन कानून की कोई गारंटी नहीं है। कानून औचित्य की तर्कसंगत गारंटी का प्रावधान कर सकता है। सभी कानून इस अर्थ में आज्ञापक है कि वे जो उनके स्पष्ट दायरे में आते हैं उन पर दायित्व डालते हैं लेकिन इससे यह अर्थ नहीं निकलता कि उससे प्रत्येक विचलन प्रत्येक कार्यवाही को घातक दाग से दागदार बना देगा। प्रावधान इस अर्थ में आज्ञापक नहीं है कि साक्षी का अभाव खाद्य निरीक्षक की पूरी कार्यवाही को दूषित कर देगा।
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