सुप्रीम कोर्ट ने एम एस शेरिफ बनाम मद्रास राज्य (1954 एआईआर 397) में कहा है कि सिविल और आपराधिक कार्यवाही के मध्य हमारा विचार है कि अपराधिक मामलों को प्राथमिकता देनी चाहिये। दूसरा घटक जो कि हमें कहता है कि सिविल मामले प्रायः वर्षों तक घसीटते रहते है और यह अवांछनीय होगा कि अपराधिक अभियोजन तब तक इन्तजार करे जब तक कि अपराध के विषय में सब भूल चुके हो। लोकहित की मांग है कि आपराधिक न्याय फुर्तिला एवं सुनिश्चित हो कि दोषी को दण्ड दिया जाये जबकि लोगों के दिमाग में घटनाये तरोताजा हो और उचित एवं पक्षपात विहीन अन्वीक्षा के सुसंगत निर्दोष को यथासंभव जल्दी ही छोड़ दिया जावे। दूसरा कारण यह है कि यह अवांछनीय है कि चीजों को तब तक भटकने दिया जावे जब तक कि लोगों की याददाश्त विश्वास करने के लिए धूमिल हो चुकी है। उदाहरण के लिए सिविल मामले और आपराधिक मामलों में प्राथमिकता देने के लिए धारा 476 कहती है।
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