Saturday 22 October 2011

अपराधियों को अनुसंधान में कमी या दोष के आधार पर दोषमुक्त नहीं किया जाना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश  राज्य बनाम अहमदुलिया (1981 एआईआर 998) में कहा है कि जिस क्षण अभियुक्त ने अपराध किया उस समय वह समझने में समर्थ था कि वह जो कुछ रहा है वह गलत था कानून के विरूद्ध था और इसी कारण वह भा.द.सं. की धारा 84 के अन्तर्गत दोषमुक्ति का पात्र नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल राज्य बनाम मीर मोहम्मद उम्मर के निर्णय दिनांक 29.08.2000 में कहा है कि यदि अपराधियों को अनुसंधान में कमी या दोष के आधार पर दोषमुक्त किया जाता है तो आपराधिक न्याय का हेतुक आहत होता है| यह प्रयास होना चाहिए कि आपराधिक न्याय बचा रहे। अभियुक्त के घोषित आशय सहित अभियोजन ने जो तथ्य साबित किये है   जब पीड़ित को घातक चोटें पहुंची उसके समय तथा जिस स्थान पर उसकी लाश  पायी गयी उसकी समीपता को देखते हुये यह अर्थ निकालने में पर्याप्त है कि आहत की मृत्यु अपहरणकर्ताओं द्वारा कारित की गयी थी। यदि इससे भिन्न कोई बात कोई सत्य होती तो उसके विषय में  सिर्फ अपहरणकर्ता ही जानते थे क्योंकि ऐसा तथ्य मात्र उन्हीं के विशेष  ज्ञान में हो सकता था। जैसा कि उन्होंने ऐसा तथ्य बताने से इन्कार कर दिया निष्कर्ष  अपरिवर्तित रहेगा।

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