Saturday 1 October 2011

बिना प्रेरणा के भी दोष सिद्धि संभव

सुप्रीम कोर्ट ने मुलखराज बनाम सतीश कुमार (एआईआर 1992 सुको 1175 )में कहा है कि उसने उसके सभी पड़ौसियों से सम्पर्क किया किन्तु वे साक्ष्य देने को तैयार नहीं थे। इसलिए अनुसंधान अधिकारी पड़ौसियो से साक्ष्य संग्रहण में असहाय था। यह इस बात का बीमा नहीं है कि वह निर्दोष है। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों में उद्देश्य/ प्रेरणा महत्वपूर्ण भूमिका रखती है। प्रेरणा अभियुक्त के दिमाग में हमेशा ताले में बन्द रहती है और कई बार इस ताले को खोलना कठिन हो जाता है। लोग बिना प्रेरणा के बिल्कुल कार्य नहीं करते। प्रेरणा को खोजने में विफलता उसके अस्तित्व को नकारती नहीं है। कानूनी दृष्टि से प्रेरणा को साबित करने में विफलता घातक नहीं है। दोषसिद्धि के लिए प्रेरणा को साबित करना अपरिहार्य नहीं है। जब तथ्य स्पष्ट है तो यह महत्वहीन है कि कोई प्रेरणा साबित नहीं हुई। प्रेरणा के प्रमाण का अभाव न तो अभियुक्त को परिस्थितियों की श्रृंखला तोड़ती है और न ही अभियोजन मामले का विद्रोह करती है।

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