Monday 3 October 2011

साक्ष्य तोला जाना है न कि गिना जाना है

सुप्रीम कोर्ट ने श्री बोधिसत्व गौतम बनाम कुमारी सुभ्रा चक्रवर्ती (एआईआर 1996 सुको 922) में कहा है कि दोषसिद्धि का आदेश देने से पूर्व अभियोजिका के साक्ष्य की संपुष्टि  की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। साक्ष्य तो तोला जाना है न कि गिना जाना है। मात्र अभियोजिका के साक्ष्य से विश्वास जागृत होता है तथा उसकी सत्यता का खण्डन करने वाली परिस्थितियों का अभाव है। वर्तमान प्रकरण में अभियोजिका का साक्ष्य विश्वनीय एवं निर्भर करने योग्य पाया गया है। यद्यपि रिकॉर्ड पर पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है फिर भी किसी संतुष्टि की आवश्यकता नहीं है। चिकित्सकीय साक्ष्य ने पर्याप्त संपुष्टि  की है।

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