Thursday 29 September 2011

लोकतंत्र में बहुरूपिये

हमारी लोकप्रिय सरकारें वोट की राजनीति के लिए एक ओर बेरोजगारी भत्ता देने, नरेगा जैसी (वस्तुतः अनुत्पादक) योजनाएं प्रारम्भ करने का (खोखला) दम भरती हैं वहीँ दूसरी ओर बेरोजगारी का मात्र उपहास ही नहीं कर रही हैं अपितु बेरोजगार युवा शक्ति का शोषण भी कर रही हैं| कल्याणकारी सरकार को सेवायोजन परीक्षा हेतु कोई शुल्क नहीं लेना चाहिए अपितु समस्त सार्वजनिक सेवायोजन की परीक्षाएं निःशुल्क होनी चाहिए| व्यवहार में देखा गया है कि देश में व्याप्त शिक्षित बेरोजगारी का हमारी सरकारें अनुचित लाभ उठा रही हैं| समाज के विकास से वास्तव में सरोकार रखने वाली कल्याणकारी सरकारें यदि परीक्षा के लिए कोई शुल्क निर्धारित भी करती हैं तो वह न्यूनतम होना चाहिए और यह शुल्क राशि परीक्षा के लिए आवश्यक खर्च की पूर्ति से अधिक नहीं  होनी चाहिए| जबकि इन परीक्षाओं के लिये सरकारों द्वारा भारी शुल्क वसूला जाता है और इस शुल्क में से भारी अपव्यय या बचत की जाती है| हाल ही में राजस्थान राज्य में आयोजित पटवार भर्ती परीक्षा इसका उत्कृष्ट नमूना है जिसमें तीस करोड रुपये से अधिक शुल्क संग्रहित हुआ और इस पर वास्तविक व्यय इस राशि का दस प्रतिशत भी नहीं था| यह और कि इस राशि का संग्रहण छः माह पूर्व प्रारम्भ हुआ था व इस संचित राशि पर ब्याज की गणना की जाये तो वह राशि भी करोड़ों में पहुँच जायेगी|

किन्तु व्यापारी प्रकृति की सरकारों ने भी निजी उद्यमियों की तर्ज पर बेरोजगारी का दोहन प्रारंभ कर रखा है और वे उसका भरपूर लाभ उठा रही हैं व सेवायोजन परीक्षाओं को एक लाभकारी व्यवसाय की तरह संचालित कर रही हैं| उक्त के अतिरिक्त इन सार्वजनिक परीक्षाओं में एक क्रूर व मनमानी शर्त और थोपी जाती है कि परीक्षा फार्म में गलती पाए जाने पर अथवा अन्यथा अपात्र होने पर शुल्क वापस नहीं किया जायेगा| इस प्रसंग में उल्लेखनीय है कि शुल्क की अदायगी  परीक्षा में बैठने के लिए की जाती है न कि कोई दण्ड के रूप में और यदि परीक्षार्थी को परीक्षा में नहीं बैठाया जाता है तो उसका शुल्क सामान्य प्रशासनिक शुल्क, यदि कोई हो तो, काटकर  वापिस लौटाया जाना चाहिए| लोकतान्त्रिक एवं कल्याणकारी सरकार को ऐसा शुल्क जब्त करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है| इस हेतु परीक्षा फार्म में ही यह व्यवस्था होनी चाहिए कि अभ्यर्थी को शुल्क वापिसी की अवस्था में नाम सहित इन्टरनेट सुविधायुक्त बैंक खाता संख्या पूछी जानी चाहिए और आवश्यकता होने पर यह राशि प्रशासनिक शुल्क काटकर इस खाते में जमा कर दी जानी चाहिए|

परीक्षा शुल्क की पर्याप्तता एवं औचित्य के विषय में भी एक उदाहरण स्मरणीय है| हाल ही तक जिला स्तरीय परीक्षा संचालन समिति द्वारा कक्षा आठ के छः विषयों की परीक्षा के लिए छात्रों से पचीस रुपये प्रति छात्र शुल्क वसूला जाता था और कई वर्षों तक इस परीक्षा संचालन का आर्थिक परिणाम यह रहा कि इन समितियों के पास करोड़ों रुपये का अधिशेष बच गया| इससे यह भी स्पष्ट है कि प्रति प्रत्याशी नाममात्र के वास्तविक व्यय पर प्रतियोगी परीक्षाएं ली जा सकती हैं यदि एजेंसी का उद्देश्य मितव्ययता से काम चलाना, और लाभ कमाना नहीं हो| उक्त विवेचन से जनता द्वारा चुनी गयी सरकारों का दोहरा चरित्र उजागर होता है  व यह मत पुष्ट होता है कि तथाकथित लोकतान्त्रिक सरकारें भी नौकरशाही के मजबूत शिकंजे में ही छटपटा रही  हैं और भारत में वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना के लिए और सघन प्रयासों की आवश्यकता है|

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हाल ही में यद्यपि ऑनलाइन फार्म भरना प्रारम्भ कर दिया गया किन्तु फिर भी पुष्टि में प्रिंट आउट की मांग की जाती  है और इसके साथ समस्त दस्तावेजों की अनुचित मांग भी की जाती  है| वास्तविकता तो यह है कि इन दस्तावेजों की प्रायोजक एजेंसी द्वारा कोई जांच नहीं की जाती है| ऐसी स्थिति  में प्रत्याशियों को दस्तावेजों के व्ययभार से अनावश्यक जेरबार करने और पर्यावरण को असंतुलित करने के अतिरिक्त यह औपचारिकता कोई महत्त्व नहीं रखती है| देश में राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा भर्ती में ऑनलाइन फार्म भरने और शुल्क जमा करने के अतिरिक्त कोई दस्तावेज नहीं माँगा जाता है व यह प्रक्रिया बैंकिंग उद्योग में सफलता पूर्वक चल रही है| जहाँ रिक्तियां कुछ हजारों या सैंकडों में ही हों वहाँ लाखों परीक्षार्थियों से दस्तावेज लेने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है| मात्र लिखित परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले परीक्षार्थी से ही साक्षात्कार या नियुक्ति के समय दस्तावेजों की अपेक्षा की जानी चाहिए ताकि कागजों का अनावश्यक ढेर इक्कठा न हो और परीक्षार्थी भी इस अनुचित औपचारिकता की पूर्ति से पीड़ित न हों| परीक्षार्थियों से इस बात की घोषणा ली जा सकती है कि उनके द्वारा दी गयी समस्त सूचनाएँ सही हैं और इसके आधार पर ही अग्रिम कार्यवाही की जा सकती है| कई बार काफी समय बाद पता चलता है कि प्रत्याशी जाली दस्तावेजों के आधार पर नौकरी लग गया| इसकी रोकथाम के लिए प्रत्याशी से प्राप्त दस्तावेजों का जारी करने वाले प्राधिकारी से गुप्त रूप से सत्यापन तुरंत किन्तु परिवीक्षा काल पूर्ण होने से पूर्व करवाया जाना चाहिए|

एक अन्य पहलू जो बेरोजगारी की  कोढ़ में खाज का काम कर रहा है वह यह है कि बेरोजगारी की बाढ़ को रोकने के लिए सरकारें योग्यता परीक्षण के नाम पर नित नयी प्रवेश परीक्षाओं के बाँध इजाद करती जा रही हैं| राज्य सरकारों में सेवायोजन का सबसे बड़ा स्रोत अध्यापन कार्य है और इस हेतु योग्यता परीक्षण के लिए पहले बी एड प्रवेश परीक्षा देनी पड़ती है व बी एड उत्तीर्ण के पश्चात अध्यापक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ती है| इन दोनों परीक्षाओं पर एक परीक्षार्थी को अन्य व्ययों के अतिरिक्त एक हज़ार रुपये अनुचित शुल्क अदा करना पडता है और उत्तीर्ण करने के बाद भर्ती परीक्षा का शुल्क अलग है| इस प्रकार कदम कदम पर प्रवेश एवं भर्ती परीक्षाओं में लिया जाने वाला शुल्क आजकल राज्य राजस्व का अहम स्रोत बनता जा रहा है| प्रत्याशियों को शिक्षा देने एवं उनकी योग्यता का परीक्षण करने के लिए विश्विद्यालय और बोर्ड कार्यरत हैं अतः हर चरण पर परीक्षाओं का जाल बिछाने का चक्रव्यूह प्रश्नास्पद हो जाता है| सरकार का इस प्रसंग में यह (कु)तर्क हो सकता है कि  इन शिक्षण संस्थाओं का कोई मानक स्तर नहीं होता अतः एक समान मानक तक पहुँचने के लिए परीक्षाओं की आवश्यकता रहती है| यह मानक तो मात्र एक भर्ती परीक्षा से ही बनाये रखा जा सकता है क्योंकि जो अभ्यर्थी योग्य नहीं हुआ वह इस परीक्षा या बी एड परीक्षा को उत्तीर्ण नहीं कर सकेगा और परिणामतः अयोग्य व्यक्ति सेवा में नहीं आ सकेगा| किन्तु सरकार के उक्त आचरण से यह लगता है कि या तो उसे इन प्रवेश, शैक्षणिक व भर्ती  परीक्षाओं- किसी  की भी विश्वसनीयता तथा मानक पर भी पूरा भरोसा नहीं है अन्यथा अयोग्य व्यक्ति के प्रविष्ट होने का अंदेशा मात्र एक परीक्षा से ही अपने आप दूर हो जाता| वैकल्पिक रूप से वह लोकतांत्रिक मूल्यों से भटक गयी प्रतीत होती है या इन परीक्षाओं का संचालन राजस्व हित को ध्यान रखकर कर रही है|

2 comments:

  1. मनीराम जी,
    सरकारें कल्याणकारी कहाँ रह गई हैं। वे तो खुद को गरीब बता कर सिर्फ और सिर्फ कारपोरेट्स की सेवा में लगी हैं। जनता के लिए उन के पास कुछ नहीं है।

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  2. आपने शब्द पुष्टिकरण हटाया है, उस के लिए धन्यवाद। अब यदि टिप्पणी मोडरेशन भी हटा दें तो अच्छा है। यदि कोई आपत्तिजनक टिप्पणी होती भी है तो उसे बाद में हटाया जा सकता है। टिप्पणीकर्ता अपनी टिप्पणी तुरंत आपके ब्लाग पर देखना चाहता है।

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