सुप्रीम कोर्ट ने पी. सिराजूदीन बनाम मद्रास राज्य (1971 एआईआर 520) में कहा है कि प्राथमिक जांच में उठाये गये कदम पूर्णतः अनुचित और अनियमित होने की अभियुक्त कोई शिकायत नहीं कर सकता क्योकि संहिता या साक्ष्य अधिनियम के किसी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा राज्य बनाम अश्विनी कुमार बलिहार सिंह की अपील संख्या 7471/3 के निर्णय में कहा है कि न्यायालय के अवमान क्षेत्राधिकार के प्रयोग में प्राथमिक रूप से अपमानकारी पक्षकार के आचरण का प्रश्न देखता है जिस पर कि निर्णय या आदेश में निर्देशों की अनुपालना में चूक की हो। यदि आदेश में कोई संदिग्धता या अनिश्चितता न हो तो यह सम्बन्धित पक्षकार पर है कि वह उपरी न्यायालय में जाये यदि उसके अनुसार यह चलने योग्य नहीं है। इस प्रकार का प्रश्न आवश्यक रूप से उच्चतर न्यायालय के समक्ष पेश किया जाना चाहिये। जो न्यायालय अवमान क्षेत्राधिकार प्रयोग कर रहा है वह मूल कार्यवाही में जो कि निर्णय या आदेश द्वारा पारित की गई थी को निर्धारित नहीं कर सकता आदेश चाहे सही हो या गलत पालन किया जाना चाहिये। न्यायालय के आदेश की अवमानना पक्षकार को अवमान के लिए दायी ठहरायेगी। एक अवमान का प्रार्थना पत्र व्यहरित करते समय जिस आदेश की गैर अनुपालना का आरोप है। न्यायालय उस आदेश से बाहर नहीं जा सकता। यह आदेश की शुद्धता या अन्यथा की जांच नहीं कर सकता और न ही कोई अतिरिक्त निर्देश दे सकता और न ही निर्देश हटा सकता। ऐसा करना पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करना होगा जबकि अवमान के लिए प्रार्थना पत्र पर कार्यवाही प्रारम्भ की गई हो। ऐस करना गैर अनुमत तथा बचाव के अयोग्य होगा।
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