Saturday 19 November 2011

प्रेरणाहीन हत्यायें भी आवश्यक रूप से पागल और बिना जुड़े लोगों का काम नहीं है

सुप्रीम कोर्ट ने सुरेन्द्र पाल जैन बनाम दिल्ली प्रशासन (एआईआर 1993 एस सी 1723) में कहा है कि एक मामला जो कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित हो में प्रेरणा विशेष महत्व रखती है क्योंकि ऐसे एक मामले में मान्यता के तर्क की प्रक्रिया प्रेरणा के अस्तित्व द्वारा प्रकाशित होती है। प्रेरणा का अभाव न्यायालय को ऐसी परिस्थितियों की सावधानी से समीक्षा करने की सावधानी की ओर धकेलता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संदेह और अटकले कानूनी प्रमाण का स्थान न ले लेवे।
सुप्रीम कोर्ट ने दिलीप कुमार शर्मा बनाम मध्यप्रदेश  राज्य (1976 एआईआर 133) के मामले में कहा है कि प्रेरणाहीन हत्यायें भी आवश्यक रूप से पागल और बिना जुड़े लोगों का काम नहीं है। अभियोजन अपराध के पीछे पर्याप्त प्रेरणा का संतोषजनक साक्ष्य संग्रहित करने में असथर्म रहते हैं। यह किसी उदारता का पात्र नहीं है। अपने अपराध की गंभीरता कम करने के लिए अपराधी अपराध की प्रेरणा दबाने का प्रयास करेंगे। इस संकल्प के लिए अधिकृति है कि एक दोषमुक्ति का आदेश जो गुणावगुण पर आधारित हो दोषसिद्धि तथा दण्ड को प्रत्येक उद्देश्य के लिए साफ कर देता है और उसी प्रकार प्रभावी जैसे कि वह कभी पारित ही न किया गया हो। एक दोषमुक्ति का आदेश  प्रारम्भ से ही लागू होता है।

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