Thursday 24 November 2011

अस्थायी गबन भी अमानत में खयानत है

सुप्रीम कोर्ट ने आर.वेंकटाकृषणन  बनाम केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के निर्णय दिनांक 07.08.09 में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने बृजलाल प्रसाद सिन्हा बनाम बिहार राज्य (एआईआर 1998 सुको 2443) में कहा है कि इसे सावधानी के नियम के तौर पर कहा जाये कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोष सिद्धि करने से पहले न्यायालय को सन्तुष्ट कर लेना चाहिए कि वे परिस्थितियां जिनसे दोषी होने का अभिप्राय लगाया गया है वे अखण्डनीय साक्ष्य होने चाहिए। चूँकि किसी को अन्ततः नुकसान नहीं हुआ। इसलिए भा.द.सं. की धारा 409 का अपराध नहीं बनता। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। एक बैंक या वितीय संस्था संभव है अन्ततः हानि नहीं उठाये। किन्तु यदि दूसरे व्यक्ति द्वारा अवैध उद्देश्य के लिए अवैध रूप से धन काम में लेने दिया जाये तो धारा 405 के घटक आकर्षित होते हैं। एक मामला जिसमें अस्थायी गबन किया गया हो भा.द.सं. की धारा 405 के घटक आकर्षित होते हैं। अभियोजन केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के द्वारा प्राप्त सूचना के आधार पर प्रारम्भ हुआ था। कानून यह नहीं है कि दोषसिद्धि का निर्णय देने के लिए हानि उठाना आवश्यक हो। अब यह सुस्थापित है कि आपराधिक कानून को कोई भी गतिमान कर सकता है। कार्य कुछ भी हो। लोकहित के लिए आशयित होना चाहिए। दूसरी ओर उसके द्वारा हुई सार्वजनिक हानि और पीड़ा अमापनीय है। हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि सफेद कालर वाले अपराध समूचे समाज पर प्रभाव डालते हैं। यद्यपि उनसे तुरन्त कोई आहत नहीं होता। केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो मात्र दिल्ली विशेष  पुलिस अधिनियम में समाहित सांविधित शक्तियों के प्रयोग में ऐसा नहीं कर सकता। अपितु यह जानकीरमण समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के संदर्भ में भी प्रसंज्ञान लेने का अधिकारी है। अन्तरण में संलिप्त सार्वजनिक धन सरकारी क्षेत्र के बैंको का है।

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