Thursday 10 November 2011

परिवादी को पक्षकार नहीं बनाया जाना चाहिए

राजस्थान उच्च न्यायालय ने भूपेन्द्र कुमार बनाम राजस्थान (1996 क्रि.ला.ज. 3180) में कहा है कि इस न्यायालय के लिए संभव नहीं है कि वह अधीनस्थ आपराधिक न्यायालयों की द.प्र.सं. के अन्तर्गत आपराधिक मामलों में अन्तनिर्हित शक्तियों से वंचित करने के विधायिका की बुद्धिमता के पीछे जाये। यह कहना होगा कि राज्य अपने सीमा क्षेत्र में शांति का अंतिम रक्षक है और आपराधिक मशीनरी को परिवादी के द्वारा अभियुक्त व्यक्तियों के साथ बदला लेने या खून खौलते अहम की संतुष्टि के लिए समाज में कुचक्र उत्पन्न करने के लिए प्रयोग नहीं करने दी जा सकती। निर्विवाद रूप से वर्तमान मामले में पुलिस द्वारा अनुसंधान कर लिया गया और विद्वान मजिस्ट्रेट ने  पुलिस द्वारा प्रस्तुत आरोप पत्र के आधार पर प्रसंज्ञान लिया है और अभियोजक द्वारा अभियोजन का संचालन किया जा रहा है। इसलिए विद्वान जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को अपास्त करने के लिए सिर्फ राज्य को ही पक्षकार के रूप में जोड़ा जा सकता है और उसे ही सुने जाने का अधिकार है तथा परिवादी को नहीं।

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