Friday 18 November 2011

आपराधिक न्याय के नए आयाम

सुप्रीम कोर्ट ने धर्मेश भाई वासुदेव भाई बनाम गुजरात राज्य के निर्णय दिनांक 05.05.09 में कहा है कि इस संदर्भ में मजिस्ट्रेट की शक्तियां सीमित है। यहां तक कि अन्यथा उसके पास कोई अन्तनिर्हित शक्ति नहीं है। सामान्यतः उसके पास अपने आदेश  को वापिस लेने की कोई शक्ति नहीं है। जब एक आदेश  मजिस्ट्रेट द्वारा पारित कर दिया गया जो कि बिना क्षेत्राधिकार के था ऐसा उच्च न्यायालय के ध्यान में लाया गया इसे स्वप्रेरणा से हस्तक्षेप करना चाहिये था।
उड़ीसा उच्च न्यायालय ने कार्तिकेश्वर नायक बनाम राज्य (1996 क्रि.ला.ज. 2253) में कहा है कि सौंपना शब्द कानूनी शब्द नहीं है। इसके विभिन्न संदर्भों में विभिन्न अर्थ है। इसका सर्वाधिक महत्व यह है कि यह संपति सम्बन्धी अधिकार देने के अतिरिक्त कब्जा सौंपना आता है। लाभकारी स्वामित्व उस सम्पति के सम्बन्ध में जिस पर आपराधिक न्यास स्वामी का आरोप है उस अभियुक्त के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति के पास होना चाहिये और वह किसी दूसरे व्यक्ति के लिए या उसके लाभ के लिए धारित करना चाहिये। जैसा कि भा.द.सं. की धारा 24 में परिभाषित है ऐसा कुछ करना जो कि एक व्यक्ति को अनुचित लाभ या दूसरे के अनुचित हानि पहुंचाये बेइमानीपूर्वक में आता है। इस प्रकार अपराध तब पूरा होता है जब दुर्विनियोग या सम्पति का संपरिवर्तन बेईमानीपूर्वक किया गया हो यहां तक कि अस्थायी दुर्विनियोग भी अपराध के दायरे में आता है।

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