Thursday 2 June 2011

उचित परीक्षण


उच्च न्यायालय ने कार्यपालक इंजीनियर बनाम चन्द्रकांत के निर्णय दिनांक 10.03.2000 में कहा है कि सत्य बना रहे इसलिए सम्पूर्ण मामले को श्रम न्यायालय द्वारा रिकॉर्ड के आधार पर विचारण के लिए भेजा जाय। इसलिए मामले के विषेश तथ्यों व परिस्थितियों के मद्देनजर सुरेन्द्रनगर श्रम न्यायालय को इस निर्देष के साथ भेजा जाय कि सम्पूर्ण प्रकरण का मूल्यांकन व निर्णय पक्षकारों को साक्ष्य देने व संषोधन की अनुमति, यदि कोई हो तो देकर की जाय।
सुप्रीम कोर्ट ने विष्वास अबा कुराने बनाम महाराश्ट्र राज्य (एआईआर 1978 एस सी 414) में कहा है कि जिस व्यक्ति के षरीर पर डॉ0 द्वारा चोटें पायी गई इस बात को सुनिष्चित करता है कि घटना के समय और स्थान पर उपस्थिति थी।इसके बावजूद कि अपीलार्थी के पैरोकार ने कटु आलोचना की है हमारे विचार में यह सत्य का घेरा है और इसे आसानी से अलग नहीं किया जा सकता ।
बम्बई उच्च न्यायालय ने राधेष्याम तिवाड़ी बनाम एकनाथ दिनांजी भिवापुरकल (एआईआर 1985 बोम्बे 285) में कहा है कि प्रतिपक्षी जो कि न्यायोचित होने का कथन करता है उसे साबित करना चाहिए कि सम्पूर्ण कथन सही है। सत्य या उचित होने का अभिवचन अर्थात् जिन षब्दों की षिकायत है वे सार तथा तथ्य रूप में सत्य है का अर्थ है ये सभी षब्द सत्य है और इन कथनों में समाहित तथ्यों का आरोपित लेख ही नहीं बल्कि पाठ्य में लगाये गये आरोप भी सत्य हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दामोदर एस प्रभू बनाम सयद बबालाल की दाण्डिक अपील 963/10 में कहा है कि चैक अनादरण के मामले में निम्नानुसार दिषा निर्देष जारी करते हैं:-
1.       कि वह प्रथम या दूसरी सुनवाई में ही बिना खर्चे के उपषमन के लिए आवेदन करेगा।
2.      यदि बाद के चरण पर अभियुक्त उपषमन हेतु आवेदन करता है तो चैक की राषि का दस प्रतिषत खर्चा विधिक सेवा प्राधिकरण या अन्य प्राधिकरण मेेें जैसा न्यायालय उचित समझे में जमा कराने की षर्त होगी।
3.      यदि उपषमन का आवेदन पत्र सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण या अपील में किया जाता है तो चैक की राषि का 15 प्रतिषत खर्चे के रूप में अभियुक्त द्वारा भुगतान करने की षर्त पर अनुमति दी जा सकेगी।
4.     अंतिम यदि उपषमन हेतु आवेदन पत्र उच्चतम न्यायालय में दायर किया जाता है तो यह राषि चैक रकम की 20 प्रतिषत तक बढ जायेगी।

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