Monday 20 June 2011

कारण देने में विफलता न्याय देने में विफलता है


सुप्रीम कोर्ट ने आयकर आयुक्त बनाम मानिक संस (1969 एआईआर 1122) में कहा है कि ट्राईब्यूनल को अपने समक्ष की अपील का विनिष्चय करते समय उन विधि एवं तथ्यों सम्बन्धित प्रष्नों जो आयकर अधिकारी एवं अपीलीय सहायक कमीष्नर के आदेषों से उठते है निर्धारण करना चाहिए। यह अधिनियम के स्पश्ट प्रावधानों के असंगत या योजना से असंगत षक्तियां उपयोग नहीं कर सकती।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने महावीर जी विराजमान मंदिर बनाम प्रेमनारायण (एआईआर 1965 इलाहा 494) में कहा है कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 125 के प्रभाव में किसी भी मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को सूचितकर्ता का नाम और उसे दी गई सूचना को प्रकट करने के लिए विवष नहीं किया जा सकता। ऐसे व्यक्तियों के संदर्भ में विषेशाधिकार का दावा किया जा सकता है और दावा अनुमत किया जावेगा लेकिन ऐसे व्यक्ति निरपवादरूप से किसी भी सिविल या आपराधिक मुकदमें में परीक्षित नहीं किये जावेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने श्रीमती स्वर्णलता घोश बनाम हरेन्द्र कुमार बनर्जी (एआईआर 1969 एस सी 1167) में कहा है कि न्यायिक अन्वीक्षण में एक न्यायाधीष को एक निश्कर्श जो कि न्यायोचित है मात्र वहां तक पहंुचना ही नहीं चाहिए अपितु उसे पूरी मानसिक प्रक्रिया, यदि न्यायालय या कानूनी परम्परा द्वारा अन्यथा अनुमत हो तो, विवाद से लेकर हल तक को दर्ज किया जाना चाहिए। जहां एक सारभूत विधि या तथ्य का प्रष्न उठता हो तो एक विवादित दावे का न्यायिक विनिष्चय केवल तभी संतुश्टिप्रद हल है जबकि उचित कारण द्वारा समर्थित हो जो कि न्यायाधीष को परामर्ष देता हो, एक आदेष जो मात्र विवादित मामले का विनिष्चय करता हो कारण द्वारा संदर्भित नहीं है तो निर्णय बिल्कुल नहीं है। यह इस बात को सुनिष्चित करने के लिए है कि यह किसी उन्माद या कल्पना का परिणाम नहीं है। यह मामलों का विनिष्चय कानून और कानून द्वारा विनिष्चित प्रक्रिया के अनुसार होना सुनिष्चित करने के उद्देष्य से है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी क्रम में पंजाब राज्य बनाम भागसिंह (2004 (1) एससीसी 547) में पुनः बल दिया है कि कारण देने में असफल रहना न्याय देने में असफलता होना होगा।

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