Sunday 5 June 2011

व्यक्तिगत मामले में भी जनहित की जाँच संभव


सुप्रीम कोर्ट ने भारत संघ बनाम कुलदीप सिंह (एआईआर 2000 एससी 827) में स्पश्ट किया है कि षब्द विवेकाधिकार का अकेले बिना किसी प्रकार की मदद के, बिना मूर्खतापूर्ण, बिना विचार या जल्दबाजी के बिना, कुषलता या बुद्धिमानी से निर्णय लेना है। अतः प्रकट रूप में विवेकाधिकार मनमानी नहीं हो सकती लेकिन न्यायिक विचारण का परिणाम होनी चाहिए। स्वयं षब्द का अर्थ सतर्कतापूर्ण सावधानी तथा ध्यान है। इसलिए जहां विद्यायिका ने विवेकाधिकार षब्द प्रयोग किया है वहां भारी दायित्व डाला गया है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मोहम्मद फारूक बनाम जिला न्यायाधीष (एआईआर 1993 इला. 8) में स्पश्ट किया है कि कानूनी रूप में तय है कि याची अपनी याचिका का एक मात्र वास्तुकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुभाश रामकुमार बिन्द बनाम महाराश्ट्र राज्य (एआईआर 2003 सु.को.269) में कहा है कि सामान्य अंग्रेजी भाशामें अधिसूचना की स्वीकृति का अर्थ और अभिप्रेत है कि सम्बन्धित तथ्य तथा घटना की कानूनी औपचारिक घोशणा और यदि कानून में सरकारी गजट में अधिसूचना के विशय में कथन है तो सरकारी गजट में अधिकृति द्वारा आदेष का विधिवत् प्रकाषन है। यह औपचारिक घोशणा है कि घोशित नीतियां उस कानून के अनुसार अपेक्षाओं की पूर्ति करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने इण्डियन बैंकस एसोसिएषन बनाम देवकला कंसलटेंसी (जे.टी. 2004 (4) सु.को.587) में कहा है कि उपयुक्त मामले में जहां कि याची ने अपने व्यक्तिगत हित में और व्यक्तिगत कारण से न्यायालय आया हो न्यायालय न्यायहित में ऐसे मामलों में सार्वजनिक हित को आगे बढाने के लिए जांच कर सकता है। इस प्रकार एक व्यक्तिगत हित मामले को भी सार्वजनिक हित मामला समझा जा सकता है। ऋणियों से संग्रहित बैंको द्वारा राषि नगण्य हो सकती है किन्तु पंाच करोड़ ऋणियों से संग्रहित राषि कोई छोटी रकम नहीं है। भारत संघ ने प्रस्तावित किया है कि अधिक वसूली गयी राषि जमा कराने के निर्देष जारी कर दिये जाये यदि ऐसा निर्देष जारी नहीं किया जाता है तो राषि ऋणियों को लौटा दी जाय।

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